For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मत्त सवैया - दो छंद

बादल भी है नुचा हुआ सा, वसुधा भी है टुकड़े टुकड़े 

शर्म हया भी बिकी हुई है, भारत के है चिथड़े चिथड़े 
भीष्म पितामह शर शय्या पर, सुत मा या में द्रोण पड़े है 
शीश गिराते कौरव देखो , शस्त्र यहाँ पर मौन पड़े हैं 
_______________________________________
सीमा तो अब नहीं देश में , शत्रु घुसा है किसी जेब में 
रुपया तो बीमार वेश में , बाढ़ घुसी है ग्राम केश में 
रोटी फेंक फेंक हम कहते, काम करो मत तुम इस लत में 
रोजगार तो दे न सकें है ,  भारत पीछे विश्व रेस में 
मौलिक व अप्रकाशित 
आशीष श्रीवास्तव (सागर सुमन) 

Views: 1394

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashish Srivastava on September 1, 2013 at 5:09pm
आदरणीय Saurabh Pandey जी
बहुत बहुत आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 4:10pm

बादल भी है नुचा हुआ सा वसुधे भी है टुकड़े-टुकड़े ... . .

वाह वाह वाह !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 4:09pm

//कुल मिलाकर मुझे जो बात समझ में आई वो यह की मत्तसवैया छंद , पदपादाकुलक छंद का डबल होता है //

इसी बात को तो मैं स्पष्ट करना चाहता था अपनी टिप्पणी में. आप तक और आपके माध्यम से यह बात सभी सदस्यों तक पहुँची मेरा प्रयास सफलीभूत हुआ.

पदपादाकुलक छंद के चरण और चौपाई की अर्धाली १६ मात्राओं की ही होती हैं.

इस क्रम में एकबात और स्पष्ट करता चलूँ कि सभी पादाकुलक और पदपादाकुलक छंद या इसी श्रेणी के अन्य छंद (यथा, अरिल्ल, उपचित्रा, पज्झटिका, सिंह, चित्रा आदि)  चौपाई छंद के नाम से व्यवहृत हो सकते हैं, लेकिन सभी चौपाइयाँ पादाकुलक, पदपादाकुलक, अरिल्ल, उपचित्रा, पज्झटिका, सिंह, चित्रा आदि छंद नहीं हो सकतीं. क्यों कि अन्य सभी छंदों की अपनी-अपनी विशिष्टता होती है जिनके कारण ये अपनी संज्ञा धारती हैं. 

   

Comment by Ashish Srivastava on September 1, 2013 at 3:58pm

आदरणीय Saurabh Pandey  जी 

इतनी महत्व पूर्ण जान करी देने के लिए सादर नमन , कुल मिलाकर मुझे जो बात समझ में आई वो यह की मत्तसवैया छंद , पद पादाकुलक छंद का डबल होता है , मैंने पहली पंक्ति को सुधार कर रहा हूँ , आशा है अब ये पंकित दोषमुक्त होगी 

(बादल) (भी है) (नुचा हु) (आ सा), (वसुधा) (भी है ) (टुकड़े) (टुकड़े) 

 (२११)  (२ २ ) (१२१)     (२ २) ,   (२११)     (२११) (२११) (२११)  

Comment by Ashish Srivastava on September 1, 2013 at 8:35am

आदरेय गिरिराज भंडारी जी 

दोहा अशुद्धि का दोष आदरणीय सौरभ जी के मार्ग दर्शन के अनुसार दोहा  छंद को सुधार कर पुनः प्रेषित कर रहा हूँ 

स्नेह आप सबका मिले , मिले मुझे आशीष 

नित रच दूँ इक काव्य को, यही कामना ईश 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 2:50am

नित /रच /दूँ /एक/ काव्य को

१ १  /१ १/ २ / १ १ /२  १ / २ 

आशीष भाई,  ए की मात्रा २ होगी.  इस तरह प्रदत्त चरण की कुल मात्रा १४ हो गयी.

छंदों में मात्रा गिराने की कोई सामान्य अवधारणा नहीं है. जिन्हें लगता है कि इस तरह की सुविधा छंद-शास्त्र ने दे रखी है, तो वे भूलवश ऐसा सोच लेते हैं. 

छंद मात्र संस्कृत और हिन्दी में ही नहीं देवनागरी लिपि के सहयोग से कई आंचलिक भाषाओं में भी लिखे जाते हैं, जैसे, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली आदि-आदि. इन भाषाओं को लेकर बड़ी भारी भ्रांति है कि ये सभी हिन्दी की उपभाषाएँ हैं ! जी नहीं. इनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व है. और ये भाषाएँ हिन्दी या संस्कृत के व्यंजनों को भले स्वीकार कर उन पर आश्रित हो जायँ, स्वरों, यथा, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि पर निर्भर नहीं करतीं, या, हम यों कहें कि इन भाषाओं में हिन्दी या संस्कृत के विदित स्वरों के अलावे अन्य स्वरों की भी आवश्यकता होती है जो वर्णमाला में उपलब्ध या सूचित नहीं हैं, लेकिन बोलचाल में खूब प्रयुक्त होते हैं.

इसी कारण आ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि की मात्रा को कई बार गिरता हुआ देखा जाता है और कई विद्वान आंचलिक भाषाओं की इस विशिष्टता को न जान कर, छंदों में मात्राओं को गिराना जैसी बात दखने लगते हैं.

इन आंचलिक भाषाओं को हमें स्वीकारना और तदनुरूप इनको मान देना ही होगा.

शुभेच्छाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 2:37am

वस्तुतः मत्त सवैया पदपादकुलक छंद की कुल १६ मात्राओं की दूनी मात्राओं का यानि ३२ मात्राओं का छंद होता है. इसके चार चरण होते हैं और प्रति दो की तुकान्तता चलती है.

अब पदपादाकुलक छंद को यों समझा जाय कि इसके सभी पद के आदि में एक द्विकल यानि लघु-लघु या एक गुरु अवश्य होता है. उसके बाद की चौदह मात्राएँ चौकल में ही होती हैं. यदि त्रिकल बनता भी है तो एक और त्रिकल रख कर संतुलित कर लिया जाता है. लेकिन पद का प्रारम्भ त्रिकल यानि लघु गुरु, गुरु लघु या लघु-लघु-लघु (।ऽ, ऽ।, ।।।) से कत्तई नहीं हो सकता.

इस तरह, पदपादाकुलक एक विशिष्ट व्यवस्था की अपेक्षा करता है. इसी पदपादाकुलक की कुल मात्राओं का दूना चूँकि मत्त सवैया कहलाता है तो इसके पदों को पदपादाकुलक छंद के नियम मानने पड़ेंगे.

अब आप इस परिभाषा से अपनी रचना को देख जायें तो पता चलेगा कि आपके प्रथम छंद के लगभग सभी पद त्रिकल से ही प्रारम्भ हो रहे हैं. और पदों में सोलह मात्राओं के बाद भी अक्सर त्रिकल ही आ रहा है, जो कि मूल नियम के आलोक में अनिवार्यतः गलत है.

चौपई छंद से अंतर

आपने पूछा है कि इस पदपादाकुलक छंद का चौपाई से क्या अंतर होता है. 

पदपादाकुलक छंद के विन्यास की अपेक्षा चौपाई छंद में नहीं होती, अतः उसकी अर्धाली (चौपाई का सोलह मात्रिक एक भाग) द्विकल, त्रिकल या चौकल से प्रारम्भ हो सकता है. यह अवश्य है कि त्रिकल के बाद त्रिकल रख कर उसे संतुलित कर लिया जाता है.

आपको विदित हो कि, पदपादाकुलक के अलावे पादाकुलक, अरिल्ल, उपचित्रा, पज्झटिका, सिंह, चित्रा आदि-आदि छंदों की तुलना चौपाई छंद से की जा सकती है. और ये छंद किसी न किसी रूप में लघु या गुरु की अलग-अलग उपस्थिति के कारण विशिष्ट बन जाते हैं. किन्तु चौपाई के विन्यास में ऐसी कोई विशिष्ट व्यवस्था नहीं होती, बशर्ते, पद का अंत गुरु लघु (ऽ।) से न हो.

विश्वास है, मेरा कहा स्पष्ट हो पाया होगा और आपकी जिज्ञासा को संतष्टि हुई होगी.

Comment by Ashish Srivastava on August 31, 2013 at 5:02pm

आदरणीय Saurabh Pandey  जी, 

http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...

 इस लिंक पर आधारित श्री अम्बरीश जी के मार्गदर्शन के आधार एवं अंतर्जाल पर उपलब्ध अन्य ज्ञान के अनुसार ही मैंने मत्त सवैया छंद रचने का प्रयास किया था , कोई भूल हो गयी हो तो कृपया मार्ग दर्शन करने की क्रपा करें

एक और प्रश्न मन में उठा था, की चौपाई छंद में भी १६ मात्रा होती है केवल अंत में गुरु आना अनिवार्य है बस इसके अतिरिक्त मन में गेयता को लेकर एक प्रश्न उठा की इसमें कुछ और भी अंतर होना चाहिए , व समझ नहीं पाया , कृपया मार्ग दर्शन करें >>>

 

Comment by Ashish Srivastava on August 31, 2013 at 4:55pm

आदरणीय Saurabh Pandey  जी, 

मार्गदर्शन करने के लिए आपको अत्यंत आभार 

भंडारी जी के कमेन्ट में , दोहे के लिए मैंने मात्र गिनती निम्न प्रकार से ली है , कृपया मार्ग दर्शन करनें 

नित /रच /दूँ /एक/ काव्य को

१ १  /१ १/ २ / १ १ /२  १ / २ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 1:20pm

भाई आशीषजी, आप छंदों पर काम कर रहे हैं यही अपने आपमें श्लाघनीय है. आपका सतत और दीर्घकालिक प्रयास अवश्य ही सकारात्मक प्रतिफल देगा.

आपके प्रतिक्रिया-छंदों पर तो समझिये मन अत्यंत प्रसन्न है.
आदरणीय श्याम जुनेजाजी एवं आदरणीय गिरिराज भण्डारीजी को आपने दोहा छंद से अपना आभार कहा है. आदरणीय गिरिराज जी को सम्बोधित दोहे के दूसरे पद के पहले चरण में मात्रिक दोष हुआ है.

मैं इस तथ्य पर आपसे इसलिये बात कर रहा हूँ कि आप नये सदस्य हैं और मात्रिकता के प्रति सतर्क हो जायँ.
आपका इस मंच पर सादर स्वागत है.
शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service