For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे वतन
------------
देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर
घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर
सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा
पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा
माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर
धरा रक्त से हो जाय लाल
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१४.८. २०१३

Views: 501

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 11:24am

आदरणीय प्रदीपजी, लेखन के प्रति आपका आग्रह अभिभूत करता है. लेकिन मेरा अनुरोध है -- हम एक लेखक या रचनाकार के तौर पर हम यह अवश्य सोचें कि प्रस्तुत हुई रचना को कोई पाठक क्यो शुरु से अंत तक पढ़े ? या, रचना की अपनी सत्ता कैसी है ?

किसी रचनाकार द्वारा हुआ निवेदन या लिखना अत्यंत सरल कार्य है. लेकिन संप्रेषण कठिन. इसके लिए वस्तुतः प्रयास करना पड़ता है.

मैं विन्दुवत बातें करता हूँ, आदरणीय -

देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर .. . .    यह मक्कर  क्या है ?


घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर ... .  घर में घुस कर मारने वालों को तस्कर कहते हैं ?


सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा...  कायर अरि बहक रहा ? क्या यहाँ बहुवचन की संज्ञा आवश्यक नहीं ? और अरि ? क्या रचना के परिदश्य में यह आरोपित शब्द नहीं लग रहा ?

आदरणीय, हर कविता या रचना अपनी औसत भाषा के अनुरूप ही शब्द चाहती है. ऐसा मेरा मानना है.

 
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा.......    हृदय सही वर्तनी है.


पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा......... ..  यह संवेदना थोड़ी और कोशिश मांगती है. 


माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर...........भले शीश गिरे धरती पर.. . किसका आदरणीय ? माँ का ? आप अवश्य ना कहेंगे. लेकिन पंक्तियों से क्या संप्रेषित हो रहा है !  .. शुभ-शुभ !


मेरा निवेदन रचनाधर्मिता की सार्थकता के प्रति है, नकि रचनाकर्म के विरुद्ध. 

इस क्रम में यदि मुझसे धृष्टता हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ.

सादर

Comment by Vinita Shukla on August 16, 2013 at 2:34pm

स्वतंत्रता दिवस पर, प्रेरक, समसामयिक पोस्ट. बधाई आदरणीय कुशवाहा जी.

Comment by MAHIMA SHREE on August 15, 2013 at 10:06pm
आदरणीय प्रदीप सर , सादर नमस्कार
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति बधाई स्वीकार करें/

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 7:43pm

आदरणीय, अति सुन्दर सामयिक रचना है , बधाई !!

Comment by D P Mathur on August 15, 2013 at 9:33am

आदरणीय कुशवाहा सर नमस्कार, आपकी इस रचना में जोश भरा है आपको बहुत बहुत बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 14, 2013 at 9:50pm

आ0 कुशवाहा सर जी, सादर प्रणाम! वाह! देश प्रेम की बेहतरीन रचना। तहेदिल से बधाई स्वीकार करें। सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 8:14pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी बहुत बढ़िया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
7 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जा रहे हो छोड़ कर जो मेरा क्या रह जाएगा  बिन तुम्हारे ये मेरा घर मक़बरा रह जाएगा …"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। गजल गलत थ्रेड में पोस्ट…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 हंस उड़ने पर भला तन बोल क्या रह जाएगाआदमी के बाद उस का बस कहा रह जाएगा।१।*दोष…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service