For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! घर की मुर्गी दाल बराबर !!!

                                                   !!! घर की मुर्गी दाल बराबर !!!

                कालिमा की घोर नाशक आभा दबे पांव क्षितिज मे अपना आधिपत्य जमाने को उतावली हो रही थी और इधर नित्य क्रिया के फलस्वरूप मुर्गे ने कुकड़ू कूं.............. कुकड़ू कूं........बांग के साथ ही जीवनमय युध्द का बिगुल फूंक दिया। सृष्टि में एक विस्मयकारी, मुग्धकारी और मनोहारी दृश्यों का सजीव प्रस्तुति प्रसारित होने लगा। मुर्गा किशोरवय था। शिकार का हर दांव-पेंच बहुत ही बारीकी से समझता था। इसीलिए आज भी उलझे हुए मांझे के साथ शिकार करने हेतु अभ्यासरत था। बंटी मुर्गे के पास बैठकर उसके अचूक और कलाबाजी पूर्ण अभ्यास को ध्यानमग्न होकर देख रहा था। सहसा उसकी मम्मी की आवाज गूंजी.....बेटा! मंजन जल्दी कर लो.....स्कूल जाना है। अचानक मम्मी जी का मोबाईल बज उठा.......प्रभु जी मेरी लाज रखना..........! हैलो.....कहते ही मम्मी जी हर्ष से चीख पड़ी।......अजी सुनते हो!......लखनऊ मेल से बन्टी के मामा जी आ रहें हैं। ...कौन? पापा ने पूछा। दिल्ली वाले.......मम्मी ने उत्तर दिया। पापा जी बोले...अरे! सीधे क्यों नहीं कहती हो कि तुम्हारा भाई और मेरा साला.....अभी पापा जी पूरी बात भी नहीं कह पाये कि मम्मी जी पुनः बोली- हां हां बातें मत बनाओं। गैराज से कार निकालो और सीधे रेलवे स्टेशन जाओ। इतना सुनते ही मुर्गा अपना अभ्यास भूल गया और खड़बड़ा कर जमींन पर धड़ाम से गिर पड़ा। वह सशंकित था। तत्काल पंख झाड़कर वह उठ खड़ा हुआ और सीधे मुर्गी के पास जाकर संशय पूर्ण पूछा- मां क्या ये वही मामा जी हैं? जिन्होने पिछली होली में मुझे अनाथ और आपको विधवा बनाया था। हां! मेरे बच्चे! यह वही मुर्दाखोर आदम है...। कहकर मुर्गी की आखों से अश्रु धारा बह निकली। मुर्गा डर से सहम गया, उसका शरीर कंपकपाने लगा। वह फड़फड़ा कर इधर-उधर उड़ने का प्रयास करने लगा लेकिन वह बार-बार नीम के पेड़ से गिर पड़ता था।...फिर भी वह लगातार उड़ रहा था।
               रोको-रोको....। की आवाज के साथ घर के द्वार पर एक आटो आकर रूकी। मामा जी...मामा जी...। मम्मी......! मामा जी आ गए..। चिल्लाकर बंटी मामा जी के गोद में चढ़ गया। मामा जी ने बंटी से पूछा बेटा तुम्हारा चूजा तो अब बड़ा हो गया होगा? बंटी ने बड़ी सहजता और प्रसन्नता से कहा हां! मामा जी! वह पहले वाले मुर्गे से भी बहुत बड़ा हो गया है। वह मेरे साथ खेलता भी है।
दोपहर के भोजन में मामा जी को थाली में मुर्गा नहीं मिला तो उन्होंने बेझिझक पूंछ ही लिया- अरे जीजा जी! इस बार मुर्गा नहीं खिलाओगे? हां भई क्यों नहीं। अतिथि तो भगवान होता है। उसकी हर प्रकार से सेवा करनी चाहिए। फिर क्या था शाम को मुर्गे की खोज होने लगी लेकिन अथक प्रयास के बाद भी मुर्गा नहीं मिला। अन्त में बंटी के पापा ने कहा- अमां साले साहब मुर्गा तो मिला नहीं लगता है कि आप से पहले उसे बिल्ली ही चट कर गयी। अगर आपकी इजाजत हो तो आज यह मुर्गी ही हलाल करें। नहीं...नहीं। बंटी रोने लगा। इस मुर्गी को मत मारों। मैं रोज अण्डे कैसे खाऊंगा? मामा जी ने बड़े ही अनमने मन से कहा- अरे छोड़ो...। जीजा जी- घर की मुर्गी दाल बराबर। आज दाल ही खा लेंगे। पापा जी तपाक से बोले- जैसे प्रभु की इच्छा।
              मामा जी दो दिन लखनऊ में सरकारी कार्यो में व्यस्त रहे। आज मामा जी वापस दिल्ली जाते वक्त बोले जीजा जी आपके लखनऊ की सब्जियां भी बड़ी लजीज हैं। मैंने तो कभी इनके स्वाद को चखा ही नहीं। वाह...वाह..। लौकी के कोपते, तरोई व भिन्डी की भुजिया, कटहल-कद्दू, गोभी-मटर तो बेटर है ही। अब से मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है। अब मैं मुर्गा नहीं केवल सब्जियां की खाना पसन्द करूंगा। मामा जी तो दिल्ली जा चुके थे।
              अगले दिन भोर तड़के ही एकाएक मुर्गे की बांग.......कुकड़ू कूं ....की आवाज सुनकर बंटी के पापा जाग गये। देखा तो मुर्गा जल्दी-जल्दी दाने चुंग रहा था क्योंकि वह पिछले दो दिनों से भूखा और मौन व्रत था। मुर्गे की बांग से बंटी भी आज जल्दी उठकर बाहर आ गया और मुर्गे को देखते ही बंटी ने उसे झट से उठाकर गले से लगा लिया और खुशी से झूमने लगा। यह देखकर उसके मम्मी-पापा दोनों के ही आंखों में आंसू भर आए।            

                                                                 !!!! इति शुभम् !!!!

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on June 16, 2013 at 5:28pm

वाह !केवल जी , क्या व्यंग्य मारा है.......और तो और  साले साहब को  बड़े सस्ते में शाकहारी भी बना दिया  ...हींग लगे न फिटकीरी रंग चोखा होई. /सादर / कुन्ती .

Comment by D P Mathur on June 16, 2013 at 4:51pm

आदरणीय  सच में मुर्गा और अन्य जीव ऐसा ही सोचते होंगे जब उनके साथ अत्याचार होता है , मांसाहार पर चोट करती आपकी एक अच्छी प्रस्तुति । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service