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अब चाँद तारे ख्वाबों में आते नहीं,

अब चाँद तारे ख्वाबों में आते नहीं, 

हम भी छत पे रातों में जाते नहीं. 
 
वो जमाना था कि बातों से गुज़र थी, 
आज हम भी वैसे बतियाते नहीं . 
 
वो पुरानी धुन अभी भी याद है, 
पर हुआ है यूँ कि अब गाते नहीं. 
 
ढ़हूंती हूँ मिल भी जाता है मगर, 
चाहिए जो बस वही पाते नहीं. 
 
सीने के ये जख्म हंसते हैं कभी, 
क्या हुआ है अब कि हम रोते नहीं. 
.
- संजू शाब्दिता -
(मौलिक अप्रकाशित) 

 

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on May 22, 2013 at 9:25pm

अच्छी कविता लिखी है आपने! बधाई!

टाइपिंग की और पास्टिंग की गलतियों पर ध्यान दें। कुछ शब्द अधूरे से पोस्ट हुए हैं। 

Comment by Neeraj Nishchal on May 22, 2013 at 9:20pm
Bahut sundar

कृपया ध्यान दे...

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