For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंदी नाली के कीड़े है ये वहशी लोग
जो रात –दिन पनप रहे है किसी   
गटर के गंदे पानी में.
छि: घिन्नता से भर रहा है मन
खिज रहा है इसकी दुर्गन्ध से
साँस भी लेना दुश्वार हुआ है
इस अमानवीय माहौल में .
इंसान नहीं ये भेङिये है
निकल पड़ते है शिकार पे और
नोचते है अपनी ही संस्कृति को
तृप्त करने वासना की प्यास को .
आओं रोंद दे इन्हें अभी की अभी
अपनी पांव की इन जूतियों से
जो आहार समझकर खा रहे है
निरंतर नारी के वजूद को.

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2013 at 4:54pm

ये निकृष्ट से प्रतीत होते वहशी लोग हम ही कुलीनों की वैचारिकता के उच्छिष्ट हैं. इन्हें धकिया-गरिया कर नहीं अंग लगा कर समझना होगा कि ये वहशी कैसे हो गये हैं.

बाज़ार किसी बोरिंग की तरह होता है, बलबलाता उगलता बेतहाशा पानी फेंकता हुआ. अब इस प्रचंड प्रवेग से सिर्फ़ स्वीकार्य की चाहना रखना अबोधपन ही होगा. आज जो घिनहे दिखते हैं वे भी इसी एन-केन-प्रकारेण सफल होने की अदबदायी हायतौबा की नाजायज उपज हैं, जो झुंझलाये हुए किसी वहशी पशु की तरह व्यवहार करते हैं..

शुभम्

Comment by राजेश 'मृदु' on May 13, 2013 at 3:49pm

इसमें कविता किधर है वो ढूंढ रहा हूं

Comment by Kundan Kumar Singh on May 11, 2013 at 8:52pm

नारी हृदय और उसमें दबे आक्रोश को बड़ी सरलता और स्पष्ट रूप से सामने रखा है। आज के परिदृश्य में इसी की आवश्यकता है। हार्दिक बधाई।

Comment by coontee mukerji on May 11, 2013 at 6:36pm

एक एक शब्द बहुत ही दृढ‌ता से संप्रेषित किया गया है और .........

तृप्त करने वासना की प्यास को .

आओं रोंद दे इन्हें अभी की अभी

अपनी पांव की इन जूतियों से

जो आहार समझकर खा रहे है

निरंतर नारी के वजूद को..........लाजवाब /सादर /कुंती

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:21pm
आओं रोंद दे इन्हें अभी की अभी
अपनी पांव की इन जूतियों से
जो आहार समझकर खा रहे है
निरंतर नारी के वजूद को.
नारी के प्रति बढ़ते अत्याचारों के प्रति नारी की जागृति अति आवश्यक है,साथ ही समाज की भी। जागरण की इस हुंकार के लिए, इस प्रयास के लिए बधाई।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 11, 2013 at 12:02pm

’आओं रोंद दे इन्हें अभी की अभी
अपनी पांव की इन जूतियों से!....।’ वाह..! बहशियों के प्रति आक्रोश स्वाभाविक ही है। सादर,

Comment by shalini kaushik on May 11, 2013 at 12:45am

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति . .बधाई .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 5:04pm
आओं रोंद दे इन्हें अभी की अभी
अपनी पांव की इन जूतियों से
जो आहार समझकर खा रहे है
निरंतर नारी के वजूद को
आदरणीया पूजा जी अभी नही तो कभी नही 
सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service