जन सेवा
देख गरीबी भारत की,
फफक फफक मैं रो पड़ा,
क्यों अभिमान करूँ अपने पर,
अपने से ही , पूंछ पड़ा ।
शर्म नहीं आती क्यों उसको,
बड़ा आदमी कहता जो खुद को,
कोई बड़ा नहीं इस जग में,
परहित नहीं हैं,यदि कर्म में ।
लग जाओ, देश सेवा में,
उठो अभी,मत करो देरी,
खिल जाएगा जीवन नभ पर,
पूज्यनीय बन जाओगे ।
कष्टों को अंगीकार करो,
अपने को तुम मजबूत करो,
केवल एक प्रभू की सत्ता,
ऐसा समझ,तुम काम करो ।
जन सेवा ही प्रभु सेवा है,
रहे ध्यान इसका सदा,
जुट जाओ,डट जाओ इसमें,
अमरत्व की प्राप्ति करो ।
अपने सपने को भी तुम,
मेहनत कर साकार करो,
कुछ कर लेने के बाद ही,
जनसेवा पर काम करो ।
कोई नहीं पूंछता उसको,
है पद ज्ञान से हीन जो,
पहले बनो खुद मजबूत,
फिर सबकी सेवा करो ।
रखो नियंत्रण लालच पर,
जरूरत का ही ध्यान करो,
करके मन और तन प्रसन्न,
जग का तुम कल्याण करो ।
हैं अमर पूर्वज तुम्हारे,
रहे ध्यान इस बात का,
जन सेवा के द्वारा तुम भी,
अमरत्व को प्राप्ति करो ।
Comment
आशीर्वचन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सौरभ पांडेय साहब ।
आपके प्रयास के लिए बधाई, भाई अखिलेशजी
बहुत-बहुत धन्यवाद केवल प्रसाद जी,हौशला बढ़ाने के लिए !
धन्यवाद मुकेरजी मैडम ।
धन्यवाद मैडम ! आपका उत्साहवर्धन हम जैसे नौसिखियों के लिए बहुत भाग्य की बात होती है ।
अखिलेश मिश्र जी बहुत उच्च भाव से परिपूर्ण कविता हेतु बहुत- बहुत बधाई काश सभी इन बातो को समझे
मिश्रा जी अच्छे भाव है ,सबका का मन ऐसा ही हो..
आदरणीय, अखिलेश मिश्रा जी, आपकी रचना में सुंदर भाव हैं- ‘अपने सपने को भी तुम,
मेहनत कर साकार करो,
कुछ कर लेने के बाद ही,
जनसेवा पर काम करो ।‘
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