For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहंकार है जड़ प्रकृति, स: ह्वै चेतन सार!

हंसा बूझि अस मूढ़मति, ज्ञानी भए भव पार!!

 

द्युलोक मा व्यापक रहत,आदित तैजस रूप!

बसुधा धारत अनल सत,वायु शून्‍य इक भूप!!

 

आदित्य सोसत सागर, गुरुत्व शून्य अस भाए!

बादल डाले  वीर्य रस, धरा उपज अति पाए!

विश्वान इक गर्भ सृजक, चेतन रहा डोलाए!!

षट घन घना कुंभ विकृत,सत जागत सुख पाए!!

 

हंस उड़त एक पाद से,इक जलाशय रहि जाए!

कर्म  पाश रस  चाहना, फिरै  सरोवर  पाए!!

 

जीवन जग जन जाति रस,बढ़त-बढ़त मिट जाए!

क्रोध-अह्म-मन-व्याधि-जड़,घटत-घटत सुख पाए!!

(के.पी.सत्यम)

मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना!

 

Views: 367

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 12:31pm

प्रयास के लिए बधाई, गुरुवर आदरणीय सौरभ जी ने विस्तार से सीख दी है, जो हम सभी के लिए उपयोगी है | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 11, 2013 at 2:29pm

भाई केवल प्रसाद जी, आपकी शास्त्रीय छंदों के प्रति ललक आश्वस्त करती है.

आप युवाओं के उस समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भारतीय शास्त्रीय छंदों को चूका हुआ मान कर स्वयं को तदनुरूप अभ्यास से बचाता नहीं,  न  ही अपने रचनाकर्म की कमियों को छिपाने के क्रम में इनके प्रयोग से अनावश्यक बिदकता है. आप जैसे रचनाकारों को छंदों पर रचनाकर्म करते देखना भला लगता है. 

यह अवश्य है कि जब हम किसी संज्ञा का उद्धरण देते हैं तो उस संज्ञा के मूलभूत नियमों को अवश्य संतुष्ट करें. अन्यथा वह संज्ञा अपना परिचय खो देती है. 

दोहा छंद के कुछ अति आवश्यक मूलभूत लिखित और मान्य नियम हैं जिनके कारण ही कोई द्विपदी दोहा छंद कहला सकती है. उनका यथोचित निर्वहन न होना उक्त छंद में की गयी रचना को ही प्रश्न के दायरे में डाल देता है.

आपके कई दोहे इस लिहाज से नियमान्तर्गत नहीं आते.

यथा,

अहंकार है जड़ प्रकृति, स: ह्वै चेतन सार!

हंसा बूझि अस मूढ़मति, ज्ञानी भए भव पार!!  .. बोल्ड दोनों चरणों को देख लीजियेगा.

 

द्युलोक मा व्यापक रहत,आदित तैजस रूप!  ... .. . .  दोहा के विषम चरण का प्रारंभ जगण शब्द से नहीं हो सकता.

बसुधा धारत अनल सत,वायु शून्‍य इक भूप!!

 

आदित्य सोसत सागर, गुरुत्व शून्य अस भाए! .

बादल डाले  वीर्य रस, धरा उपज अति पाए!............   यह पूरा छंद नियमानुसार अस्पष्ट है. दोनों सम चरणों का अंत दोषयुक्त है. पाए, भाए को सहज ही पाय या भाय कहा जा सकता था.. . ए की कुल मात्रा दो होने से पाए या भाए ४ मात्राओं के होंगे यानि गुरु गुरु.. पहल् पद का विषम चरण भी दोषयुक्त है.

विश्वान इक गर्भ सृजक, चेतन रहा डोलाए!!

षट घन घना कुंभ विकृत,सत जागत सुख पाए!!.. .   इसके दोनों सम चरण का पदांत ही पिछली द्विपदी की तरह दोषयुक्त है.

 

हंस उड़त एक पाद से,इक जलाशय रहि जाए!

कर्म  पाश रस  चाहना, फिरै  सरोवर  पाए!! ........ ...पूर्ववत सम चरण पदांत दोष

 

जीवन जग जन जाति रस,बढ़त-बढ़त मिट जाए!

क्रोध-अह्म-मन-व्याधि-जड़,घटत-घटत सुख पाए!!.. . जाय, पाय करने से सम चरण का पदांत दोष हटाया जा सकता है.

नियमों के सधने के बाद ही छंदों के कथ्य और तथ्य पर बात होती है.

शुभेच्छाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
18 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service