For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे

हर भाव को सामर्थ्य दे

विह्वल हृदय में गूँजती

मृदुनाद सी सुरधीत है....

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

सूर्यास्त नें चूमा उदय

दे हस्त में, तुझको हृदय

चिर प्रज्ज्वला तेरी प्रभा

लौ दिव्य दिवसातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

कुंदन करे ऐसी अगन

यज्ञाग्नि में आहूत मन

अस्पृष्ट सी शुचिकर छुअन

सुगृहीत देहातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

दुर्नीति से दुर्भीत था

व्यक्तित्व जो परिवीत था

सब सींखचों को तोड़कर

वह आज व्योमातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

 

निर्भीत=निर्भय , अभिनीत=पूर्णता से सजाया हुआ , सुप्रणीत=सुन्दरता से रचित , सुगृहीत=जिसे ठीक प्रकार से ग्रहण किया गया हो , दुर्नीति=बुरा नीति विरुद्ध आचरण , दुर्भीत=बुरी तरह डरा हुआ , परिवीत=छिपाया हुआ , व्योमातीत=जिसके लिए आकाश भी छोटा हो.

Views: 1468

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 19, 2013 at 5:57pm

यह गीत आपको पसंद आया और आपकी बधाई प्राप्त हुई, इस हेतु आपकी आभारी हूँ आ. कमल किशोर अग्रवाल जी 

Comment by vijay nikore on March 19, 2013 at 10:09am

आदरणीया प्राची जी,

१६ फ़रवरी को पहली बार यह अनूठी रचना पढ़ी थी,

 

तदुपरांत इसको मैंने और मेरी जीवन साथी नीरा जी ने

कई बार हल्के-हल्के गुनगुनाया है, और आपके मनोहर

शब्द चयन और शब्दों की लय का रसास्वादन किया है।

 

आज आपको लिखने का अभिप्राय हमारा आपसे यह निवेदन है

कि यदि आप इस अनूठी रचना को स्वरित करके obo पर post

कर सकें तो और भी आनन्द आएगा ... जैसा  कि आपके त्रिभंगी

छंद से आया था।

 

असमंजस में हूँ कि यह अप्रतिम रचना कैसे लिखी-लिखी गई!

 

सादर और सस्नेह,

विजय

 

 

Comment by कमलकिशोर भागिरथजी अग्रवाल on March 6, 2013 at 11:28pm

प्राची जी  नमस्कार!    आपकी रचना पढी ! बहोत आनन्द आया ! आपको बहोत बहोत बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 1, 2013 at 3:44pm

इस गीत के भाव आपको पसंद आये, भावों की सराहना व रचना के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार आ. मनोज जी 

Comment by Manoj Nautiyal on March 1, 2013 at 7:38am

बहुत सुन्दर रचना प्राची जी | प्रेयसी का अपने प्रेमी की पदचाप भी संगीत लगती है , मधुर गीत लगती है ..... प्रेम भाव का सुन्दर अलंकरण |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 27, 2013 at 8:26pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीया सीमा जी 

Comment by seema agrawal on February 27, 2013 at 11:50am

बहुत पावन भाव और चिंतन के साथ लिखा हुया समर्पित गीत..... शब्दों में बहते हुए प्रांजल भावों की  चन्दन  गंध मन को महका गयी 

दुर्नीति से दुर्भीत था

व्यक्तित्व जो परिवीत था

सब सींकचों को तोड़कर

वह आज व्योमातीत है...

बहुत बहुत बधाई इस गीत के लिए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 20, 2013 at 9:17pm

आदरणीय नादिर खान जी, रचना निहित भावों को पसंद कर अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर.

Comment by नादिर ख़ान on February 20, 2013 at 5:10pm

दुर्नीति से दुर्भीत था

व्यक्तित्व जो परिवीत था

सब सींकचों को तोड़कर

वह आज व्योमातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

आदरणीय प्राची जी सुंदर भाव पूर्ण  अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 18, 2013 at 11:32am

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, 

आपको यह गीत रुचा यह जान लेखन कर्म को प्रोत्साहन मिला है.. आपके अनुमोदन के लिए आपका सादर आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service