For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन निर्मल निर्झर, शीतल जलधर, लहर लहर बन, झूमे रे..

मन बनकर रसधर, पंख  प्रखर  धर, विस्तृत अम्बर, चूमे रे..

ये मन सतरंगी, रंग बिरंगी, तितली जैसे, इठलाये..

जब प्रियतम आकर, हृदय द्वार पर, दस्तक देता, मुस्काये.. 

डॉ. प्राची.

मौलिक , अप्रकाशित.

Views: 944

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aarti Sharma on February 4, 2013 at 9:53pm

मैंम आप जो भी लिखती है बहुत अच्छा लिखती है..आपकी रचना बहुत पसंद आई ..बधाई स्वीकारें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 9:44pm

आदरणीय सौरभ जी, उच्चारण दोष तुलनात्मकता द्वारा स्पष्ट करने के लिए आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2013 at 9:36pm

चरण मन बनकर रसधर गाइये .. और देखिये.  कोई दिक्कत नहीं होगी.

शब्द समुच्चय वाष्प पंख  में वाष्प के प पर बलाघात समाप्त नहीं होता कि पंख के पंख का बलाघात आ जाता है. इस तरह का हुआ बलाघात में अचानक का परिवर्तन छंद प्रवाह झेल नहीं पाता.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 9:19pm

क्या "मन बनकर रसधर"में भी  उच्चारण दोष होगा आदरणीय ?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 9:07pm

आदरणीय सौरभ जी, 

वाष्प पंख से जो वाष्प का विशेषण ( उड़ता हुआ, उठता हुआ, घुलता हुआ ) रूप उद्दृत हो रहा था, उसी पर मन मुग्ध था लिखते हुए, 

पर  वाष्प पंख में  दो प एक साथ आने पर उच्चारण दोष बन रहा है, जिसे आपने इंगित किया है 

अब वाष्प के पर्यायवाची ...भाप., में भी प है.......  अब और कोइ मुझे अभी याद नहीं आ रहा.

प्रखर शब्द से भाव तो बदल रहा है, पर यह भी पूरी रचना को समुच्चय में देखते हुए, यहाँ प्रयुक्त किया जा सकता है, ( आखिर प्रेम की प्रखरता ही तो पंखों को अम्बर माप सकें, ऐसी की उड़ान देती है).

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 8:59pm

हार्दिक आभार रचना की सराहना के लिए आदरणीय गणेश जी .

हाहाहा आदरणीय,

मन को लकी शब्द बना दिया मेरी रचनाओं के लिए..

वैसे हर रचनाकार की मन से लिखी गयी हर रचना अलग ही होती है!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2013 at 8:54pm

प्रखर शब्द यदि आपके भाव को सही संप्रेषित कर पा रहे हैं तो यह एक उचित शब्द है.  पंख प्रखर धर .. वाह !  ... लेकिन वाष्प पंख सटीक क्यों नहीं बन पा रहा है यह जानना भी रोचक होगा. कुछ साझा कीजये न, आदरणीया..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2013 at 8:53pm

आदरणीया डॉ साहिबा, अपेक्षाकृत कठिन छंद त्रिभंगी पर आपका प्रयास काबिले तारीफ़ है, रचना अच्छी बन पड़ी है, वैसे भी आपकी जिस रचना में "मन" आता है वो रचना हिट हो जाती है, जैसे ....रे मन ..... :-)

बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत छंदमय अभिव्यक्ति पर |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 8:52pm

रचना के अनुमोदन के लिए आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 8:51pm

इस रचना के साथ साथ आपका मन झूम उठा यह जान कर प्रसन्न हूँ, सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
18 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service