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सब बिकाऊ हे


बाज़ार में आज सब बिक रहा है 
होता हे कुछ और कुछ दिख रहा है
दाम हो तो बोली लगाओ चाँद की
आसमान भी शर्म से अब झुक रहा है
बाज़ार में आज--------------

ईमान बिक रहा हे जमीर बिक रहा है
मजहव के नाम पर दाँव फिक रहा है
सम्मान की तो सरेआम होती नीलामी
सदभाव बहा देती सम्प्रदायिकता की सुनामी
बाजारू दलाल फलफूल रहा है
बाज़ार में आज-----------

बदन बिक रहा हे सदन बिक रहा है
लोकतंत्र की नई परिभाषा लिख रहा है
कुर्सी के खातिर होती हे सौदेबाजी
जनता का बिश्वास कचरे में फिक रहा है
बाज़ार में आज-------------

रक्त बिक रहा हे भक्त बिक रहा है
अक्स बिक रहा हे दरख़्त बिक रहा है
श्रद्धा और आस्था तो होती हे स्वार्थवश
सिंहासन भी अब तीन पाँव पर टिक रहा है
बाज़ार में आज--------------

Dr.Ajay Khare Aahat

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Comment by seema agrawal on December 21, 2012 at 8:58pm

बाज़ार में आज सब बिक रहा है 
होता हे कुछ और कुछ दिख रहा है 
दाम हो तो बोली लगाओ चाँद की
आसमान भी शर्म से अब झुक रहा है....जी अजय जी सबकुछ बिक रहा है क्योंकि खरीदार मौजूद हैं 

ईमान बिक रहा हे जमीर बिक रहा है 
मजहव के नाम पर दाँव फिक रहा है 
सम्मान की तो सरेआम होती नीलामी
सदभाव बहा देती सम्प्रदायिकता की सुनामी
बाजारू दलाल फलफूल रहा है....................अब तो दलाल सिर्फ बाज़ार में नहीं संसद में भी बैठे हैं तभी तो यह सब संभव हो पाता  है 

हर आम आदमी के मन के शब्द हैं ये ...क्या होगा आगे जैसे डर भी ...बधाई एक स्वर के लिए 

Comment by विजय मिश्र on December 21, 2012 at 3:30pm

होता हे कुछ और कुछ दिख रहा है "---  सियासी गंदगी जो गाँव से राजधानी तक व्याप्त है , बेबाक  समझा देती है .

" बदन बिक रहा हे सदन बिक रहा है " ---  हमारे बिकाऊपन की सही सीमांकन करने में सक्षम है . 

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