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जब वचन निभाने राम चले ....

जब वचन  निभाने राम चले ....
जब वचन  निभाने राम चले ,
संग सिया चली और लखन चले,
दशरथ के प्राणाधार चले ,
कौशल्या के अरमान चले 
जब वचन ......
 
जिस आँगन में खेले राघव ,
घुटनों के बल दौड़े जिसमे ,
नयनों में अश्रु भर रघुवर 
उस आँगन को ही छोड़ चले .
जब वचन .......
 
कैकेयी इच्छानुसार  चले ,
होनी को कर स्वीकार चले ,
उर्मिल उर की सब आस चली ,
सुमित्रा के विश्वास चले .
जब वचन निभाने ....
 
सारी  समृद्धि  और वैभव ,
महलों की सारी सुविधाएँ ,
त्यागी तत्क्षण अविलम्ब सभी ,
धारण कर तापस वेश चले .
जब वचन .... 
 
साकेत की लेकर सब रौनक ,
सरयू की सारी शीतलता ,
उपवन  के पुष्पों की सुरभि ,
चिड़ियों की लेकर चहक चले .
जब वचन ..........
 
मित्रों के मुख की मुस्कानें 
और प्रजा ह्रदय की निश्चितता ,
युवा वर्ग की उत्सुकता ,
साकेत का ले आनंद चले .
जब वचन ..................
 
उषाकाल की उज्ज्वलता 
व् निशाकाल की मादकता  ,
प्रकृति की सारी चंचलता  ,
ले पवन का सब आवेग चले .
जब वचन ..................
 
संगीत स्वर सब शांत हुए ,
नुपुर ध्वनि भी मौन हुई ,
चौदह वर्षों को राम नहीं 
साकेत के  मानो प्राण चले .
जब वचन निभाने राम चले .
 
                                   शिखा कौशिक 
 
 
 
 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2012 at 10:42pm

राम के वन-गमन को शब्द-चित्र देना भी अच्छा लगा, शिखाजी.

बधाई

Comment by shalini kaushik on October 2, 2012 at 9:19pm
bahut bhavnatmak prastuti .aabhar

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2012 at 2:27pm

शिखा जी, राम वनगमन को बहुत ही सरल शब्दों में आपने उकेरा है, अच्छी रचना बन पड़ी है, बधाई हो |

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