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मुफलिस ही रहने दो हमको

मुफलिस ही रहने दो हमको
हम न मांगे चांदी -सोना .
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना

जाहिद जाने रसमे -इबादत,
हमको उसके ,इश्क की आदत
जिसके नूर की एक शफक से,
रोशन दिल का कोना- कोना

इश्क- ए- खुदा हो जाने दे कामिल
उसकी नज़र में ,होकर शामिल
दिन भर रब की मैय को पीकर
रात में चादर तान के सोना

ये है सराय घर न तेरा
जिसमे लगाया तूने डेरा
कल आयेंगे , और मुसाफिर
मालिक बदले रोज बिछौना

आनंद तनहा

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Comment

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 12:23pm
मुफलिस ही रहने दो हमको
हम न मांगे चांदी -सोना .
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना

बहुत ही बढ़िया रचना है आनंद साहब,,,,बेहतरीन ग़ज़ल है.....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 21, 2010 at 7:50pm
ये है सराय घर न तेरा
जिसमे लगाया तूने डेरा
कल आयेंगे , और मुसाफिर
मालिक बदले रोज बिछौना
बेहतरीन ख्यालात है भाई, एक अलग रंग दिखा आपकी ग़ज़ल मे, बहुत बढ़िया, दाद कुबूल कीजिये श्रीमान |
Comment by Julie on October 20, 2010 at 9:36pm
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना

बिलकुल सही लिखा आपनें आनंद जी... दिल की अमीरी पैसों की अमीरी से कहीं बढ़कर होती है... सुंदर रचना... बधाई...!!
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 20, 2010 at 5:11pm
आनंद भाई, स्वागतम ...आपकी अति सुन्दर रचना के लिए बधाई .... थोड़ी सी एडिटिंग की ज़रुरत है ...रात की जगह रत टाइप हो गया है..ठीक कर लेंगे तो और भी सुन्दर हो जायेगा ....

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