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माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया

हमको देखे बिना उसने हाँ कह दिया
मेरे खाना-ए-दिल को मकाँ कह दिया

चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए
माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया

आग तडपी तपिश तिल-मिलाने लगी
सर्द से कोहरे को धुआँ कह दिया

छोड़ के मुझको जाँ मेरी जाँ ले गयी
बेबफा जब मिली जाने-जाँ कह दिया

हम गरीबों की किस्मत में कैसा महल
झोपडी को ही सारा जहाँ कह दिया

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 9:09am

आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी सादर नमन
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 8:16pm
आदरणीय संदीप भाई जी उम्दा गजल के हार्दक बधाई।और इस मिशरे के लिए खास तौर पर-
हम गरीबों की किस्मत में कहां है महल।
झोपड़ी को ही सारा जहां कह दिया॥
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 9:40am

आदरणीय सचिन जी सादर नमस्कार
आपकी सराहना पा कर एक उत्साह आ गया है
अपना ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार

Comment by SACHIN on August 31, 2012 at 9:34am

आदरणीय संदीप जी ,

सादर नमस्कार ,

"चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए 
माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया "
 
आनंद की अनुभूति हुई इन पंक्तियों को पढ़कर! हार्दिक बधाई एवं धन्यवाद !
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 9:20am

आदरणीय सतीश मातपुरी जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना पा कर लेखन को बल मिला है
अपने ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 9:18am

आदरणीय वीनस जी सादर नमन
आपकी बधाई पा कर मन प्रसन्न हो उठता है
या यूँ कहूँ की लेखन में इक नयी जान आ जाती है
अपना ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
तहे दिल से शुक्रिया आपका इस जर्रानवाजी के लिए

Comment by satish mapatpuri on August 31, 2012 at 2:32am

खुबसूरत ख्याल .... सुन्दर पेशकश ... बधाई संदीप जी

Comment by वीनस केसरी on August 31, 2012 at 12:40am

बढ़िया शेर कहे हैं

बधाई

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