For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २५

तशवीशात के अजीमुश्शान महल में जैसे खो गया हूँ. हज़ार रास्ते, मगर कौन सही है, दीवारें जो दिख रहीं हैं वो आँखों का धोखा तो नहीं. दरीचों में समाया मंज़र शायद वहम हो. जगह जगह फिक्रों के फानूस टंगे हैं, अज़ीयतों के जौहर से दरोदीवार आरास्ता हैं. दूर कहीं आँगन में अंदेशों के आबशार से बह रहे हैं, बगीचे खौफ के दरख्तों से गुंजान और उलझनों के टिमटिमाते चरागों से शबिस्ताँ रौशन है. गलियारों में कशीदगी के कालीन बिछे हैं, कफेपा से जिनपे दिल की शोरीदगी के नक्श उभर आए हैं. बैठकखानों में मखफी सायों की मजलिस लगी है, खामोशियाँ जिनका खैरमकदम कर रही हैं.

 

मैं जागा हूँ या ख्वाब में हूँ, ये शब का सांवला बदन है या सहर का का पहला धुंधलका? जो हो रहा है वो सच है या मेरे तफक्कुरात से तखलीककर्दा दुनिया! कौन मुझे बताए मैं ज़िंदा हूँ या गिरफ्तारेअज़ल?   

 

© राज़ नवादवी

भोपाल, सायंकाल ८.१० बजे, २१/०७/२०१२

 

तशवीशात- चिंताएं; अजीमुश्शान- आलीशान; अज़ीयत- कष्ट; जौहर- रत्न, मणि; आरास्ता- सज्जित; आबशार- झरने; गुंजान- घना, गहन; शबिस्ताँ- शयनगाह; कशीदगी- अप्रसन्नता; कफेपा- तलवे; शोरीदगी- उद्विग्नता; मखफी- अदृश्य; मजलिस- सभा; खैरमकदम- अभिनन्दन; शब- रात्रि; सहर- सुबह; तफक्कुरात- भय, चिंता; गिरफ्तारेअज़ल- मरणासन्न

Views: 414

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 27, 2012 at 11:29am

आदरणीय अलबेला जी, बहुत बहुत शुक्रिया. 

Comment by राज़ नवादवी on July 27, 2012 at 11:29am

आदरणीय रेखाजी, सही फरमाया आपने. शम्मा तो रौशन है, पर खुद अपनी दानाई इसका चिलमन है.  आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by Rekha Joshi on July 23, 2012 at 5:35pm

राज़ जी ,सादर 

तशवीशात के अजीमुश्शान महल में उस उपरवाले के नाम का दिया रौशन कर लीजिये ,सब खुदबखुद ठीक हो जाए गा ,शुभकामनाये 
Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 11:05pm

waah janaab !

ye rang bhi khoob hai...............

jiyo dost !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
16 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
17 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
17 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
18 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
18 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service