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 तनहा खड़ा एक पेड़ हूँ मैं 

मन ही मन खड़ा  छटपटाता हूँ 

अतीत की धुंद में खो जाता हूँ 

कभी था बाग़ ए बहार यहाँ 

उजड़ा गुलशन बिखरा ये चमन 

लगता अब जैसे शमशान यहाँ 

आज न वो आँगन है 

न ही वे संगी साथी 

जिन पे  फाँसी झूले थे सेनानी 

भारत के अमर वीर बलिदानी 

नगर विकास  सौंदर्यीकरण की आंधी में 

खेतों संग वे भी आरी की भेंट चढ़े 

हम ही रह गए यहाँ तनहा खड़े 

दूर दूर तक धूल उड़े 

पथिक कहाँ विश्राम करे 

जग बदला तो मौसम बदला 

पावस में अब पड़ता सूखा

तापमान हुआ परवर्तित 

पशु नर नारी हुए व्यथित 

पर हाय मानव तू न बदला 

गौतम बुद्ध, संत ज्ञानेश्वर 

गुरु समर्थ और शिर्डी के साईं 

मान दिया सम्मान दिया 

पेड़ों की महिमा बढ़ाई

देव समान सम्मान हमारा 

सबने मिल महिमा गायी

अब मैं बूढ़ा हो चुका

पर है चिंता भारी 

जाना तो सबको एक दिन 

मेरी भी तैयारी 

छाँव में तब मेरी बैठकर 

शिक्षा कोई कैसे पायेगा 

मिला था जिन्हें दिव्य ज्ञान 

ऐसा योगी कब आएगा 

भटके हुए पथिकों को 

जीने की राह दिखायेगा 

दूषित मन कटते वन 

पर्यावरण संरक्षा को 

ये खतरा महा भारी 

काहे चलाते आरी मुझ पर 

जब पूजत हैं श्रद्धा से नर नारी 

पड़े जरूरत काटो मुझको 

इससे हमें इनकार नहीं 

बिना जरूरत काटोगे हमको

तो तुम से बड़ा गद्दार नहीं 

एक के बदले पांच लगाना 

इससे कम स्वीकार नहीं 

शायद मुझमें  औषध गुण था 

इसीलिए था मैं बच पाया 

ऐसे ही तुम भी बनना 

ऐसे ही पेड़ लगाना 

शायद कोई योगी आकर 

फिर तेरा मान बढ़ाये 

सार्थक हो नाम "प्रदीप" तेरा 

अगली पीढ़ी को सुख दे जाये. 


 

 

 

 

 

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Comment

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Comment by Sarita Sinha on April 11, 2012 at 10:30pm

adarniy kushwaha ji, sadar namaskar,

bahut sundar soch hai. koi gun kama sakein tabhi hamari pahchan hai vrna janm lena bekar hai.....

anukarniy vichar...

Comment by अश्विनी कुमार on April 11, 2012 at 8:05am

आदरणीय प्रदीप जी सादर अभिवादन ,,,अति सुंदर भावभिव्यक्ति प्रवाह भी लगभग सध रहा है.......सादर 

Comment by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:50am

ऐसे ही तुम भी बनना

ऐसे ही पेड़ लगाना

शायद कोई योगी आकर

फिर तेरा मान बढ़ाये

सार्थक हो नाम "प्रदीप" तेरा

अगली पीढ़ी को सुख दे जाये

बहुत खूब प्रदीप जी ............ बहुत ऊँचे भाव ........ दाद कुबूल फरमाएं

Comment by वीनस केसरी on April 11, 2012 at 12:20am

पेड़ की पीड़ा ने व्यथित किया, रचना का उद्देश्य पूरा हुआ, बधाई स्वीकारें

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2012 at 9:08pm

आदरणीय सिंह साहब जी, सादर अभिवादन.

आप और शशि  जी वह भाई वाह. रचना अपने आप पवित्र हो जाती है. धन्यवाद. 
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 10, 2012 at 6:47pm
आयेगा जरूर कोई योगी मन भाए रे! 
पेड़ का भी मान बढ़ाये बढ़े छाए रे!
प्रदीप जी दीप जलाएं, ज्ञान  की ज्योति फैलाएं,
जवाहर भी जगमगाये, झिलमिलाये रे!
बहुत ही करुण पर  सन्देश परक रचना आदरणीय कुशवाहा जी! बधाई!

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