ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.
होंठ तेरे गुलाबी ,शराबी नयन.
संगमरमर सा उजला है , तेरा बदन.
रूप यूँ ना सजाया - संवारा करो, टूट कर आईना भी बिखर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
सारी दुनिया ही तुम पर, मेहरबान है.
देख तुमको फ़रिश्ते भी, हैरान हैं.
मुसकुरा कर अगर तुम इशारा करो , आदमी क्या - खुदा भी ठहर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
तुम तसव्वुर की रंगीन, तस्वीर हो .
सच तो ये है कि लाखों कि, तकदीर हो.
मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा, खुद ब खुद भाव उनका निखर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
............... सतीश मापतपुरी
Comment
अति सुंदर लयबद्ध कृति के लिए हार्दिक आभार काव्य के लचीलेपन ने मन मोह लिया .....सादर
ह्रदय से आभार प्रदीप जी
vah sir ji vah kya kahne. sara ka sara achha. badhai swikar kare aadarniya mahoday sadar pranam ke sath.
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