For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये भारत देश हमार है

शस्य  श्यामला  धरती  अपनी   

भाल    हिमालय  मुकुट  श्रंगार  है 

झर  झर  झरते  झरने  मही  पर

कल  कल  बहती  नदियों  की  बहार  है 

ये   भारत  देश  हमार   है 

 

कई  सम्प्रदायों  से  बसी   ये  धरती

 पर  करते  आपस  में   प्यार  है 

भाषा  बदले  भूषा  बदले  

आपस  में  न  कोई  तकरार  है 

ये  भारत  देश  हमार  है 

मानव  धर्म  सबसे  हसीं 

इंसानियत  का   व्यवहार  है 

होली  हो  या  ईद  दीवाली  

पर्व  दशहरा  सबका  ये  त्यौहार  है 

ये  भारत  देश  हमार  है 

 

 

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 21, 2012 at 9:17pm

रचना में प्रयुक्त शब्द ’हमार’ में अंतर्निहित अभिभूत करती आत्मीयता को मेरा सादर नमन. आदरणीय प्रदीपजी, शस्य श्यामला मनोहारी इस भारत भूमि का कण-कण अभिजात्य रहा है. कहना अन्यथा न होगा, इसकी ऊर्जस्विता में दीखती अवनति के कारक मनस से विछिन्न हम संतति ही हैं. 

आपके स्वर में हम भी स्वर मिला कर कहते हैं, भारतपुत्रों को सद्बुद्धि मिले.

सादर

Comment by Dr. Shashibhushan on March 21, 2012 at 8:51pm

आदरणीय प्रदीप भैया,
सादर !
आप तो बिलकुल ताल ठोक कर तैयार हैं ! नमन के साथ मेरी भी ललकार !
.
"ओ कलुषित विचार वालों सुन लो तुम ध्यान लगाकर !
सत्यमार्ग के पथिक न डिगते, बाधा से घबरा कर !
सहज प्रेम की नयी किरण के स्वागत को तैयार हैं !
शस्य-श्यामला धरती अपनी, भारत देश हमार है !!"
वन्दे मातरम् !!!

Comment by minu jha on March 21, 2012 at 7:54pm

बहुत सुंदरता से आपने अनेकता में एकता के भावों को समेटा है कुशवाहा जी

बहुत बहुत बधाई

Comment by अश्विनी कुमार on March 21, 2012 at 3:51pm

अति सुंदर अनेकता में एकता की नींव को और गहरे तक ले जाने का प्रयाश करती हुई रचना .....सादर ..."जय भारत" 

Comment by Santosh Kumar Singh on March 20, 2012 at 6:42pm

Comment by Santosh Kumar Singh on March 20, 2012 at 6:42pm

आदरणीय सर ,सादर प्रणाम
बहुत अच्छी रचना ,अनेकता में एकता है और एकता में भी अनेकता है ,..इस एकता को खंडित करने के प्रयास हो रहे हैं हमें उनको रोकना होगा ..बहुत बधाई

Comment by Santosh Kumar Singh on March 20, 2012 at 6:37pm

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 20, 2012 at 6:18pm

आदरणीय प्रदीप जी,

कुछ हद तक देश की विविधता को समेटे हुए आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर बन पड़ी है| बधाईयां!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 20, 2012 at 5:08pm

aadarniya shahi ji, saadar abhivadan. sneh hetu aabhari hun. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service