For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ दोहे श्रृंगार के --संजीव 'सलिल'

कुछ दोहे श्रृंगार के
संजीव 'सलिल'
*
गाल गुलाबी हो गये, नयन शराबी लाल.
उर-धड़कन जतला रही, स्वामिन हुई निहाल..

पुलक कपोलों पर लिखे, प्रणय-कथाएँ कौन?
मति रति-उन्मुख कर रहा, रति-पति रहकर मौन..

बौरा बौरा फिर रहे, गौरा लें आनंद.
लुका-छिपी का खेल भी, बना मिलन का छंद..

मिलन-विरह की भेंट है, आज वाह कल आह.
माँग रहे वर प्रिय-प्रिया, दैव न देना डाह..

नपने बौने हो गये, नाप न पाये चाह.
नहीं सके विस्तार लख, ऊँचाई या थाह..

आधार चाहते भाल पर, रखें निशानी एक.
तम-मन सिहरे पुलककर, सिर काँधे पर टेक..

कंधे से कंधे मिलें, नयन-हृदय मिल साथ.
दूरी सही न जा सके, मिले अधर-पग-हाथ..

करतल पर मेंहदी रची, चेहरा हुआ गुलाल.
याद किया प्रिय को हुई, मदिर नशीली चाल..

माटी से माटी मिले, जीवन पाये अर्थ.
माटी माटी में मिले, जग-जीवन हो व्यर्थ.

Views: 433

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on February 6, 2012 at 6:59pm

पुलक कपोलों पर लिखे, प्रणय-कथाएँ कौन?

मति रति-उन्मुख कर रहा, रति-पति रहकर मौन..

.....दोहे का  जबाब नही...बधाई सलिल जी .

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:57pm

सलिल जी ,,छॊटॆ मुह बड़ी बात,,,,,,,वाह,,,,,,,,, के शिवाय कुछ नहीं  कह सकता,,,,,,,,,,,,कमाल ,,,बधाई,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2012 at 11:49am

माटी से माटी मिले, जीवन पाये अर्थ.
माटी माटी में मिले, जग-जीवन हो व्यर्थ.

सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं इस दोहे का तो जबाब नही.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service