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ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !

ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !

 

पेट की भूख का है बयाँ ज़िन्दगी ,

अस्ल में  मौत का है कुआँ ज़िन्दगी |

 

सबसे आगे निकलने की एक होड़ है ,

जलती संवेदनाएं धुआँ ज़िन्दगी |

 

इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,

हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |

 

हम जमूरों की साँसें  उसी हाथ हैं ,

उस मदारी के फ़न की अयाँ ज़िंदगी |

 

मौत के पास है सबके घर का पता ,

चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |

 

हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,

किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |

 

           - अभिनव अरुण [22112011]

 

 

 

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on November 23, 2011 at 5:44pm
thanks to Admin ji.
Comment by Admin on November 23, 2011 at 4:10pm

अरुण जी, उक्त शेर जोड़ दिया गया है !

Comment by Abhinav Arun on November 23, 2011 at 2:15pm

अश्वनी जी आपका हार्दिक  आभार | किसी को एक शेर भी पसंद आ जाये तो लिखना सार्थक हो गया ऐसा मैं maanta hoon | aapkpa स्नेह बना रहे |

Comment by Abhinav Arun on November 23, 2011 at 2:15pm

 

इसमें एक शेर और था छूट  गया अगर एडमिन जी अंत में  जोड़ दें तो कृपा होगी |

हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,

किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |

Comment by Abhinav Arun on November 22, 2011 at 9:36am

इधर हालात कुछ ऐसे बन जा रहे हैं कि मैं चाह कर भी कई आयोजनों में शामिल  नहीं हो पा रहा हूँ | मसलन इस बार का चित्र से काव्य | विषय पर लिखी हुई ग़ज़ल भी पोस्ट नहीं कर सका | तैय्यारी धरी रह गयी | कभी काम तो कभी नेट की बेवफाई | किसे दोष दूं ... | सो वह ग़ज़ल यहाँ दे रहा हूँ |

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