21122---21122---2112 |
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हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस |
बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस |
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हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी |
देख हमें गैरों पे इनायत, तुम भी न बस |
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जब भी कहा- है प्यार भला क्या, कुछ तो कहो |
लम्स की वो पुरजोर वकालत, तुम भी न बस |
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बात को समझो यूं भी न छेड़ो, हिज्र के गम |
रोज़ करेंगे नैन बगावत, तुम भी न बस |
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नाम हमारे चाँद सितारे, कर भी तो दो |
दिल से लिखोगे आज वसीयत, तुम भी न बस |
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जी में जो आये जिद्द कभी तकरार कभी |
फिर से वही आदाब इबादत, तुम भी न बस |
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सिर्फ मुहब्बत सिर्फ मुहब्बत, रात से दिन |
चुप तो रहो नासाज़ तबीयत, तुम भी न बस |
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लोग करेंगे बात, हिदायत दी थी मगर |
फिर से वही आँखों से हिमाकत, तुम भी न बस |
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बात घुमाकर रात करोगे, तुम तो मियां |
जान चुके ‘मिथिलेश’ हकीकत, तुम भी न बस |
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(आ. वीनस भाई और आ. गिरिराज सर को समर्पित: उनकी ग़ज़ल की कठिन बह्र पर एक प्रयास) |
Comment
आदरणीय मिथिलेश भाई , इस कठिन बह्र पर आपकी मुहब्बत पर रवायती ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ! दिली मुबारकबादें हाज़िर हैं , कुबूल करें ।
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