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डॉ पवन मिश्र's Blog (12)

नवगीत- लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है

अब तो आओ कृष्ण धरा ये थर्राती है।

लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।

द्युत क्रीड़ा में व्यस्त युधिष्ठिर खोया है,

अर्जुन का गांडीव अभी तक सोया है।

दुर्योधन निर्द्वन्द हुआ है फिर देखो,

दुःशासन को शर्म तनिक ना आती है।।

लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।

धधक रही मानवता की धू धू होली,

विचरण करती गिद्धों की वहशी टोली।

नारी का सम्मान नहीं अब आँखों में,

भीष्म मौन फिर गांधारी सकुचाती है।।

लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती…

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Added by डॉ पवन मिश्र on December 11, 2017 at 8:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल- आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे

२१२२ १२१२ २२

आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे।

आज फिर उसने कुछ सुना मुझसे।।

बाद मुद्दत के आज बिफ़रा था।

आज दिल खोल कर लड़ा मुझसे।।

जिसकी क़ुर्बत में शाम कटनी थी।

हो गया था वही ख़फ़ा मुझसे।।

दूर दिल से हुए सभी शिकवे।

टूट कर ऐसे वो मिला मुझसे।।

दरमियाँ है फ़क़त मुहब्बत ही।

अब कोई भी नहीं गिला मुझसे।।

चांद तारे या वो फ़लक सारा।

बोल क्या चाहिए ? बता मुझसे।।

क़ुर्बत= सामीप्य

फ़लक=…

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Added by डॉ पवन मिश्र on December 3, 2017 at 1:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल- नवजीवन की आशा हूँ

22 22 22 2


नवजीवन की आशा हूँ।
दीप शिखा सा जलता हूँ।।

रक्त स्वेद सम्मिश्रण से।
लक्ष्य सुहाने गढ़ता हूँ।।

जीवन के दुर्गम पथ पर।
अनथक चलता रहता हूँ।।

प्रभु पर रख विश्वास अटल।
बाधाओं से लड़ता हूँ।।

घोर तिमिर के मस्तक पर।
अरुणोदय की आभा हूँ।।

भावों का सम्प्रेषण मैं।
शंखनाद हूँ कविता हूँ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by डॉ पवन मिश्र on February 5, 2017 at 6:58pm — 12 Comments

नवगीत- आया जाड़ा हाड़ कँपाने

अँगड़ाई ले रही प्रात है,

कुहरे की चादर को ताने।

ओढ़ रजाई पड़े रहो सब,

आया जाड़ा हाड़ कँपाने।।

तपन धरा की शान्त हो गयी,

धूप न जाने कहाँ खो गयी।

जिन रवि किरणों से डरते थे,

लपट देख आहें भरते थे।

भरी दुपहरी तन जलता था,

बड़ी मिन्नतों दिन ढलता था।

लेकिन देखो बदली ऋतु तो,

आज वही रवि लगा सुहाने।

आया जाड़ा हाड़ कँपाने।।

गमझा भूले मफ़लर लाये,

हाथों में दस्ताने आये।

स्वेटर टोपी जूता मोजा,

हर आँखों ने इनको…

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Added by डॉ पवन मिश्र on January 22, 2017 at 8:30pm — 11 Comments

ग़ज़ल- रोज करता खेल शह औ मात का

2122       2122       212

रोज करता खेल शह औ मात का।

रहनुमा पक्का नहीं अब बात का।।

कब पलट कर छेद डाले थालियाँ।

कुछ भरोसा है नहीं इस जात का।।

पत्थरों के शह्र में हम आ गए।

मोल कुछ भी है नहीं जज़्बात का।।

ख्वाहिशें जब रौंदनी ही थी तुम्हे।

क्यूँ दिखाया ख़्वाब महकी रात का।।

इंकलाबी हौसलें क्यों छोड़ दें।

अंत होगा ही कभी ज़ुल्मात का।।

मेंढकों थोड़ा अदब तो सीख लो।

क्या भरोसा…

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Added by डॉ पवन मिश्र on January 16, 2017 at 9:34pm — 17 Comments

ताटंक छन्द- उरी हमले के संदर्भ में

नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।

रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।

सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।

चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।

सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।

प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।

अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।

माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।

वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 19, 2016 at 3:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल- सितारे रक़्स करते हैं

1222 1222 1222 1222



उन्हें देखें जो बेपर्दा सितारे रक़्स करते हैं।

नज़र जो उनकी पड़ जाए नज़ारे रक़्स करते हैं।।



तेरे पहलू में होने से शबे दैजूर भी रौशन।

बरसती चाँद से खुशियाँ सितारे रक़्स करते हैं।।



तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।

इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।



कभी तो तुम ही आओगे शबे हिज़्रां मिटाने को ।

इसी उम्मीद से अरमां हमारे रक़्स करते हैं।।



जड़ों की कद्र तो केवल समझते हैं वही पत्ते।

शज़र… Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 9:55am — 14 Comments

कुण्डलिया- हिंदी दिवस के सम्बन्ध में

हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।

देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।

मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।

मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।

कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।

इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।

 

दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।

सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।

सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।

चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।

सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।

होती सच्ची चाह, न…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 14, 2016 at 9:30pm — 13 Comments

ग़ज़ल- वो कहे लाख चाहे ये सरकार है

212 212 212 212



वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।

मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।

मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।

देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।

कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।

और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।

सब चुनावी गणित नोट से हल किये।

जीत तो वो गये देश की हार है।।

चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।

बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।

अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।

शाख़ पर उल्लुओं की तो…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 9, 2016 at 9:02pm — 6 Comments

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल- इश्क़ की राहों में

2122 2122 212



इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।

हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।

साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।

ऐ खवातीनों सुनों मेरा कहा।

क्यूँ जलाती हो दिखा अँगड़ाइयाँ।।

चाहता हूं डूबना आगोश में।

ऐ समंदर तू दिखा गहराइयाँ।।

दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?

रात भर बजती रही शहनाइयाँ।।

तुम गये तो जिंदगी तारीक है।

हो गयी दुश्मन सी अब रानाइयाँ।।

दूर…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 1, 2016 at 9:54pm — 6 Comments

ताटंक छन्द

(२ जून २०१६ को जवाहर बाग़, मथुरा की हृदयविदारक घटना के सन्दर्भ में)



थर्रायी धरती फिर देखो, कुछ कुत्सित मंसूबों से।

स्वार्थ वशी हो कुछ अन्यायी, फिर बोले बंदूकों से।।

माँ का आँचल लाल हुआ फिर, रक्त बहा है वीरों का।

मुरली की तानों से हटकर, खेल हुआ शमशीरों का।१।



पूछ रही मानवता तुमसे, क्या तुम मनु के जाये हो।

ऐसा क्या दुष्कर्म किया जो, भारत भू पर आये हो।।

सत्याग्रह का चोला ओढ़े, तुम किस मद में खोये हो।

मथुरा की पावन धरती पर, क्यों अंगारे बोये… Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on June 4, 2016 at 5:30am — 10 Comments

भुजंगप्रयात छन्द

भुजंगप्रयात छन्द

दिलों में सदा प्रेम ही हो हमारे।
डिगे ना कभी पाँव देखो तुम्हारे।।
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।

हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

✍ डॉ पवन मिश्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by डॉ पवन मिश्र on May 25, 2016 at 12:12am — 11 Comments

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