For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आपसे कुछ बातें ...

स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं वर्षगाँठ के स्मरणोत्सव में व्याख्यान देने के लिए मैं USA के विभिन्न शहरों में कुछ सप्ताह के लिए यात्रा कर रहा हूँ। फ़रवरी के अंत तक ऐसा रहेगा । हाँ, यह कह्ते हुए मुझको हर्ष है कि Americans स्वामी जी के आध्यात्मिक संदेश में काफ़ी रूचि ले रहे हैं ... मेरे व्याख्यान के उपरांत वह ‘काफ़ी’ और ‘अच्छे’ प्रश्न पूछते हैं, उदाहरण स्वरूप ....

वह जानने को उत्सुक हैं कि ...आत्मा के बारे में हमारे क्या विचार हैं ... पाप क्या है ... पुन्य क्या है ... पापी कौन कहलाता है ... आत्मा का प्रवास ... पुनर्जन्म ..और उसमें ब्रह्मा का क्या हाथ है ... ब्रह्मा और ईश्वर में अंतर क्या है ... माया क्या है ... निजी उत्तरदायित्व ... श्रद्धा ... श्रद्धा और आस्था का हमारे भारतीय जीवन में क्या स्थान है ... नास्तिक कौन है ... आत्म्समर्पण ... आध्यात्मिक्ता और धर्म में क्या अन्तर है ...

सच, मैं तो हैरान हूँ।

वह भी आश्चर्यचकित हैं कि भारतवर्ष में इतनी आध्यात्मिक्ता है। कई श्रोता जो भारत आ चुके हैं, वह पूछतें हैं .....

"ऐसा क्यों कि भारत में आकर भी वहाँ उन्होंने स्वामी जी के बारे में, या श्री रामकृष्ण जी और माँ शारदा के बारे में उनका नाम तक नहीं सुना, और यहाँ अमरीका में उनके बारे में उन्हें इतनी अच्छी चीज़ें सुनने को मिल रही हैं।"

हाँ, एक व्याख्यान से पहले दीवार पर श्री रामकृष्ण जी महाराज का बड़ा पोस्टर देख कर एक भारतीय पुरुष (जो भारत में जन्मे और बड़े हुए) ने आ कर मुझसे पूछा, "यह कौन हैं?"... अच्छा है कि उन्होंने यह प्रश्न पूछा ... उन्हें उनके विषय में जानकारी न होना, यह उनकी गलती कदाचित नहीं है ... यह हमारी शिक्षा की गलती है ... हम भारत में प्राय: निजी भाषाओं के माध्यम में भी आध्यात्मिक्ता के बारे में नहीं सिखाते तो अन्ग्रेज़ी माध्यम की पाठशालाओं से हम क्या आशा रख सकते हैं?

अभी मेरी ज़िन्दगी खानाबदोश की ज़िन्दगी है ... आज यहाँ, कल वहाँ , अभी कम्पयूटर है, अब नहीं है ... अत: मुझे खेद है कि व्याख्यान में व्यस्त होने के कारण मैं कई दिनों से मंच पर आप सभी के योगदान का पूर्ण रसास्वादन न कर सका। अभी-अभी कई अच्छी रचनाएँ पढ़ीं, और आनन्द आया ।

आपके कहे के अनुसार मैं यह लेख हिन्दी में लिख रहा हूँ ... आपका कहा मेरे सर-आँखों पर । आप कुछ कहें, आप कुछ पूछें ... यह मेरी प्रसन्नता है, और आपके कहे का पालन करना मेरी प्रसमता है ।

सादर और सस्नेह।
प्रसन्न रहें।
विजय निकोर

Views: 511

Replies to This Discussion

आपकी संवेदनशीलता अभिभूत करती है, आदरणीय विजयजी.

जिस तरह का माहौल अपने देश में तारी है, क्या हम-आप उससे आँख मूँद सकते हैं ? बच्चों के लालन-पालन के क्रम से लेकर उनकी आजकी शिक्षा, आजका समाज और देश की उन्नति के अर्थ क्या भारतीय हैं, या रहने दिया गया है ? जिन परिस्थितियों में कई पंथीय समूहों की ओर से वैचारिक घृणा का उत्पात मचा है, उसके विरोध में हुई प्रतिक्रिया तक को रंग विशेष का आतंकवाद कहना और देश के एक बड़े नागरिक समूह का मुखर या मौन अनुमोदन क्या कुछ स्पष्ट नहीं करता है ? हम तुरत संतुलन-संतुलन खेलने लगते हैं. विशेष पंथीय कोई पापी पकड़ा नहीं गया कि हम आप तुरत हिन्दु पापी का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और स्वयं को तथाकथित धर्मनिर्पेक्ष साबित करने को लालायित हो उठते हैं.  फिर कोई भारतीय युवा कैसे अपनी अस्मिता के प्रति अपने में ललक देखे ?

आपने जो प्रश्न अमेरिकियों की ओर से किये हैं क्या यही प्रश्न आज के भारतीय युवाओं की ओर से अपेक्षित प्रश्न नहीं हैं ? लेकिन इस तरह के प्रश्नों के समाधान का देश में वातावरण क्या है ? क्यों ? आजकी शिक्षा का अर्थ ही है कि उसके माध्यम से शिक्षित समाज भारतीय बिम्बों के प्रति अन्यमनस्क मात्र ही न हो जाय बल्कि वह भारतीय जीवन पद्धति के विन्दुओं को उन पंथों की अवधारणाओं के समकक्ष रखने लगे जो पुस्तक या वाद अभिप्रेरित होते हैं. भारतीय जीवन पद्धति सर्वग्राही है इसकी समझ न इस शिक्षा से पगे विद्वानों को समझ में आती है,  न वे समझना चाहते हैं और लगातार हमें ’लोक-समाही तंत्र’ का अर्थ ’समझाया’ जाता है !

दिल्ली के ही नहीं कतिपय अन्य शहरों के महाविद्यालयों में आज जो वातावरण है, क्या वह छुपा है ? भारतीय अस्मिताओं और भारत के पौराणिक या आध्यात्मिक बिम्बों के साथ जिस तरह से खुल्लमखुल्ला खिलवाड़ किया जाता है, वह आज के युवाओं को राष्ट्रीय अवधारणा और आध्यात्मिकता के प्रति उत्प्रेरित करता है क्या ? फिर रामकृष्ण को उनकी तस्वीर में न पहचानना क्यों आश्चर्य का विषय हो !!

विजयजी, आज तक हम विकृत विद्वानों को श्रद्धा और धर्म का पर्याय क्रमशः faith और religion नहीं होता, यह तक समझा नहीं पाये हैं. ऐसे, आदरणीय, कई-कई शब्द हैं जिनमें से कुछ को आपने सूचीबद्ध भी किया है, जिनकी गहराई में पश्चिमी या भारत के ही विकृत विद्वान उतर तक नहीं पाये हैं, न ही उनकी अवधारणाओं तक पहुँच पाये हैं. 

इन परिस्थितियों में आश्चर्य करने और प्रश्न करने की जगह, आदरणीय, हम अपने तईं कार्यरत रहें. जिन स्वामीजी की आपने बात की है उनके समय का भारत तो और भी विडंबनाओं और विद्रुपताओं से भरा था. जब वे अपना कर्म करते चले गये, तो हम आप ’गिलहरी का योगदान’ भी कर पायें, वही समीचीन होगा.

यही कारण है आदरणीय विजयजी, व्यक्तिगत रूप से मैंने ओबीओ के पटल से काव्य विधा को अंगीकार किया है, कि, आध्यात्म का आकाश अत्यंत विस्तृत है और वह कई रूपों में संप्रेषित और संसृत होता है. काव्य उसमें सबसे सरस माध्यम है. हम प्रश्नोत्तर के माध्यम से बहुत कुछ साझा कर सकते हैं लेकिन मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि ऐसा कोई प्रयास एकांगी या मोनोटोनस हो जाता है.

शेष फिर कभी.

सादर्

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
18 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
21 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
21 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
21 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service