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अहाँक ई रचना कहबाक नै, मोन टा मुग्ध कए देलक..
निम्नांकित ई दुइ बंद विशेष रुचगर प्रतीत भेल -
//बाजव हमर ततेक मधुर अछि
सुनिते सब जन होथि प्रसन्न
उपजशील धरती एहि ठामक
उपजै अछि सब तरहक अन्न
माँछ, मखान, पान के प्रेमी
रस सं भरल विलासी छी,
हम मिथिला केर वासी छी
बांसक बनल वस्तु सब देखू
सींक, चंगेरी, सुपती, मौनी
कोकटी धोती, तन पर मिरजई
पाग माथ पर काँधे तौनी,
कला, साहित्य, संगीत, नीति के
हम ही सब प्रकाशी छी,
हम मिथिला केर वासी छी//
भाईजी, एह उत्कृष्ट रचना पर हम्मर दृष्टि विलंब सँ पड़ि रहल अछि तकरा लेल हम अहाँ सँ क्षमा-याचना कर रहल छी.
पुनर्पुनः बधाई..
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