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"आपकी रचनाएँ यथार्थ के धरातल से जन्म लेती है। हमने सभी ने आपकी रचना की सर्वव्यापकता क…"

वेदिका replied Apr 6, 2014 to ‘कोहरा सूरज धूप’ की समीक्षा - जहीर कुरैशी

6 Apr 8, 2014
Reply by बृजेश नीरज

"'परों को खोलते हुये अंक -१' की समीक्षा राहुल जी कलम से प्राप्त हुयी| अति हर्ष का विष…"

वेदिका replied Nov 18, 2013 to समीक्षा - परों को खोलते हुए-1 : एक पाठकीय प्रतिक्रिया -राहुल देव

14 Nov 24, 2013
Reply by धर्मेन्द्र कुमार सिंह

"आहा! इतनी सुंदर काव्यात्मक समीक्षा! आपने मुझे गौरव प्रदान किया आ0 आदित्य जी!  मै आभा…"

वेदिका replied Nov 18, 2013 to ''परों को खोलते हुए'' की काव्यात्मक समीक्षा....................आदित्य चतुर्वेदी........समीक्षक

11 Nov 24, 2013
Reply by धर्मेन्द्र कुमार सिंह

"आदरणीया मानोशी जी! को इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर बधाई!आदरणीय बृजेश जी की कलम के द्वारा…"

वेदिका replied Aug 18, 2013 to साहित्यिक अंजुमन में मानोशी का उन्मेष

15 Aug 27, 2013
Reply by बृजेश नीरज

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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
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"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
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"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
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"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
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AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
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