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दो पहिए की सवारी साईकिल,
पापा मुझको दिलवा दो साईकिल।

बिना तेल के चलती है,
प्रदूषण नहीं फैलाती साईकिल।

पैट्रोल-डीजल के दाम बढे,
खर्चा कम करवाती साईकिल।

स्कूटर-मोटर में है खतरा,
सबसे सुरक्षित सवारी साईकिल।

कोई आगे आ जाए तो,
घंटी तभी बजाती साईकिल।

शरीर मेरा तन्दरुस्त रहे,
दो पैरों से चलाऊं साईकिल।

बच्चे-बूढे और जवान,
सबको खुश कर देती साईकिल।

दो पहिए की सवारी साईकिल,
पापा मुझको दिलवाओ साईकिल।

मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '

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Replies to This Discussion

आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, बाल-साहित्य केलिए आपका प्रयास स्तुत्य है. बाल-रचनाओं का सदैव स्वागत है. 

लेकिन यह भी उतना ही सही है कि ’बाल’ शब्द का प्रयोग मात्र हो जाने से कोई रचना श्लाघनीय नहीं हो जाती. विद्वानों का तो यह भी कहना है कि सबसे कठिक साहित्यकर्म बाल-रचनाएँ ही हैं. अर्थात ऐसा नहीं है कि कोई जैसे-तैसे, बचपना करता हुआ कुछ भी कह दे और वह बच्चों केलिए उपयुक्त हो जायेगा. इस संदर्भ में आपदेखें कि आपकी प्रस्तुत रचना में साइकिल की तुकान्तता पर समान्तता क्या है ? कुछभी नहीं ! ऐसे यह कविताकर्म में बाल-गान (राइम) कैसे हुआ ? आपसे आग्रह है, कि विधा और विधान पर उपयुक्त अध्ययन कर, बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए रचनाकर्म करें. 

सादर शुभकामनाएँ 

आदरणीय श्री सौरभ पांडे जी सर्वप्रथम रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक आभार।आपने जो मार्गदर्शन किया है वह बहुत ही कीमती है। मैं प्रयास करूंगा कि आगे से और भी अच्छा लिखूं।मैं तो अभी लिखना सीख ही रहा हूँ। आपका कोटि-कोटि आभार।

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