For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महाउत्सव" अंक-57 में सम्मिलित सभी रचनाएँ

श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी  
तुला पलड़ा 
 
आत्मा की आवाज़ सुन, गुरु पर कर विश्वास।
पाप पुण्य को तौलने, यही तुला रख पास॥
 
उपेक्षित यदि बुज़ुर्ग हैं, होगा बेड़ा ग़र्क़।
पड़ला भारी पाप का, पहुँचा देगा नर्क॥
 
दूल्हों की मंडी सजी, सभी युवक अनमोल।
ठोक बजाकर देख फिर, कितना देगा बोल॥
 
लेकर बिटिया साथ में, आये ग़रीब तात।
जो लोभी न दहेज का, वो लाये बारात॥
 
तुला बिना ही तौलते, पाप पुण्य का भार।
लेखा जोखा जीव का, रखते हैं कर्तार॥
 
तोल मोलकर बोलिये, हर रिश्ता अनमोल।
कटु शब्दों की मार से, रिश्ते डाँवाँडोल॥
*************************************************
श्री सौरभ पाण्डेय जी 
महाभुजंगप्रयात सवैया [यगण (यमाता, ।ऽऽ, १२२, लघु-गुरु-गुरु) x 8] 
===========================================
कभी बोलिये जो उसे तौलिए, भाव के दोलने में, सुझाये तराज़ू 
सदा मूल्य सापेक्ष कैसे सभी को, मिलें वस्तुएँ ये निभाये तराज़ू 
भले आदमी की भली भावनाएँ, सदा तूल्य होतीं, जताये तराज़ू 
भली ज़िन्दगी में भला भिन्न क्या है, इसे भूलिये तो बताये तराज़ू 
 
सदा ही अकर्मों, विकर्मों, विचारों, यथावादिता के स्तरों को बताता 
दिखा है सदा न्यायप्रेमी तराजू, ’कभी द्वंद्व पालो न धारो’ पढ़ाता 
मनोभावना या मनोवृत्तियों की दशा के सभी पक्ष सापेक्ष लाता 
दिखा संयमी भावना की प्रभा को सदा मान देता, सदा ही बढ़ाता
 
कई बार संभाव्य में ही जुटा है, कई बार सच्चाइयों को जुटाता 
कभी ये स्वयं ही नमूना बना तो, कई बार ये मानकों को बनाता 
बँधी आँख पट्टी खड़ी जो इसे ले, उसी मूर्ति को न्याय-देवी बताता 
तराजू न सोचे किसे ’क्या’ मिला है, बिना मोह दायित्व सारे निभाता 
******************************************************************
श्री गिरिराज भंडारी जी  
अतुकांत रचना
***********

आप सब रोयेंगे एक दिन 

समझ आते ही / अपनी-अपनी समझ पर 
मैं देख सकता हूँ !  

जहाँ पत्थर में भगवान बसते हैं

वहाँ मुझे मुर्दा , बेजान समझते हैं

 

मैं समझता हूँ सब कुछ

मुझे बेजान साबित करने में किस किस का हाथ है

किस किस की भलाई छिपी है

षड़यंत्र किसका है

 

सजा देना मेरा काम नहीं है

लेकिन बता दूँ मैं , आज

सबकी जानकारी के लिये , मन छुब्ध है मेरा

 

जब तुम सब मेरे पलड़ों में एक तरफ भार रखते हो

तो दूसरी तरफ केवल सामान ही नहीं रखते

साथ मे रखते हो अपना ईमान

और , मैं सामान तौलता भी नहीं

मैं तो तौलता हूँ तुम्हारा ईमान

और मैं जानता हूँ ,

किसका ईमान कितने पानी में है

 

इसीलिये कहता हूँ

जब वक़्त समझायेगा मेरी जीवंतता

सब रोयेंगे

अपनी अपनी नासमझी पर ॥

*************************************
श्री मिथिलेश वामनकर जी 
न मजहब से सियासत की, हो तुलना इक तराज़ू से
ये बन्दर हल करेंगे खूब मसला  इक तराजू से
 
पता चल जाएगा क्या फर्क तुझमें और मुझमें है
चलो बस घूम आते है जरा सा इक तराजू से
 
मेरी शोहरत लगी भारी, मेरे फनकार के आगे
फन-ओ-मकबूलियत खुद तौल बैठा इक तराजू से
 
कि तुलना के लिए औरों का भी ईमां जरूरी है
अकेले खुद को कैसे तौल लेता इक तराजू से
 
भला जिनको नहीं मालूम है इन्साफ के माने
नवाजे हाथ क्यों उनके खुदाया इक तराज़ू से
 
कि चूल्हे भी कभी जिनके घरों में जल नहीं पाते
उन्हें तहज़ीब रख के तौलना क्या इक तराजू से
 
जरा सोचो कि उसका भी भला क्या हौसला होगा
अभी जो मेढकों को तौल आया इक तराजू से
 
कभी तो तज्रिबे से तौल लो इंसानियत यारों 
जुरुरी तो नहीं तौलें हमेशा इक तराज़ू से 
 
मुहब्बत को तिजारत मान कर वो चल पड़ा लेकिन
कभी तो वासिता उसका पड़ेगा इक तराजू से
 
न माने दोस्ती में शुक्रिया, अहसान तू, फिर क्यों 
मुझे भी तौलने को यार निकला इक तराज़ू से
******************************************************
सुश्री डॉ नीरज शर्मा जी 
शीर्षक—्तुला/ पलड़ा / तराजू
विधा---सरसी {चार चरण- विषम चरण में १६-मात्रा-चौपाई की तरह / सम चरण में ११-मात्रा –दोहे की तरह}
 
चमचे नेता को बैठाकर , रहे तुला में तोल।
दूजे पलड़े(पल्ले) में सिक्के रख , लगा रहे हैं मोल॥
 
इक में सच्चाई , मानवता, ऑनेस्टी का मेल।
दूजे में नेता को रक्खो ,  फिर देखो  यह खेल॥
 
देश –प्रेम, सज्जनता जिनको , कभी न प्यारी होय।
पलड़े में बैठा उस जन को , सदा तुला भी रोय॥
 
आंखों पर पट्टी बांधी हो , फिर भी करती न्याय।
कर में शोभित उस देवी के, तुला रही मुस्काय॥
 
तोल मोल के बोल सदा ही, कहते संत फकीर।
मीठी वाणी से तन मन की , हर ले जन की पीर॥
 
पाप-पुण्य जीवन के, प्राणी , कर्म तुला पर तोल।
फल की चिंता छोड़, समझ ले, इस जीवन का मोल॥
*****************************************************
सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी
भीगे ख़त 
बारिश  में भीगे  कागजों को, 
कबाड़ी ने तौलने  से मना  कर दिया ,
कि  भीग कर कागज़ ,
भारी हो जाते हैं ,
अपने वज़न से ज़्यादा,
वज़न दिखाते हैं I
तुम्हारे ख़त भी 
जब जब पढ़ती हूँ 
आंसुओं  से  भिगाकर उन्हें 
वज़न दे देती हूँ 
यूं , भीग कर यादें 
दिल की तली में 
बैठ जाती हैं, 
आज की खुशियों  को 
हल्का कर जाती हैं I
सोचती हूँ , बेवज़ह ही 
आंसुओं , से सींच कर 
इन खतों  को ,
वज़न दे दिया है,
वरना , इतने भी
वज़नी  नहीं हैं ये I
कुछ मेरी नादानियाँ  थीं ,
कुछ थे , तुम्हारे अहम्
और  दुनियादारी ,
तुम तो भुला ही
चुके  हो ,
फिर  मैं क्यों  
यादों को भार दूं ,
और आज को हल्का कर ,
हाथों से उड़ने दूं 
******************************************************
सुश्री राजेश कुमारी जी
दोहे ---तराजू
द्रव्य मान को माप कर ,तुला बताती भार|
इसके बिन तो ना चले ,दुनिया में व्यापार||
 
धान,पान, पैसा सभी ,तोल तराजू तोल|
सुख-दुख, किस्मत का वजन,कौन करेगा बोल||
 
निज सुख साधन तोलकर,खुश होते हैं आप|
कौन तराजू तोलता,दूजे का संताप||
 
तेरा है भारी अगर ,पलड़ा सुख का मूल|
दूजे का भारी अगर,क्यूँ  आँखों का शूल||  
 
 बुरे शब्द अक्सर सुना,देते हैं आघात| 
ज्ञान तुला से तोल कर,मुख से निकले बात||
 
जिसे तुला ना तोलती,नेह भाव अनमोल|
पल भर में उस भाव को ,नैना लेते तोल||
 
 सद्बुद्धी को त्याग कर,करले पाप हजार|            
  ऊपर बैठा तोलता, पुण्य पाप करतार||
 
  पलड़ों में रख कर अलग,सत्य झूठ का भार|
  आँखों पर पट्टी पहन ,तोल रही सरकार||
 
खुले दृगों से तोल कर, खुद को मन से छान|
पल में ही होगा तुझे ,निज कमियों का भान||  
 
इक पलड़े पछुवा हवा, दूजे में संस्कार|
दूजा ऊपर उठ गया, अधिक हवा का भार||
**********************************************
श्री लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी 
बूंद बूंद अनमोल (दोहें)
===============

सब धर्मों का सार है, सत्य बड़ा अनमोल,

सब धर्मो के पंथ को, एक तुला पर तोल |

मानव का जीवन सदा, होता है अनमोल,
कोई भौतिक संपदा, उसे न पाए तोल |

माँ ममता के प्रेम का, मोल बड़ा अनमोल
दुनिया भर की संपदा, करे न पूरा तोल |

धरती नीरव जल बिना, समझो इसका मोल,
पानी खर्चों तोल कर, बून्द बून्द अनमोल |

बिन तोले ही बिक रहा, देखों तत्व विराट,
कचरा भी बिकता यहाँ, जग की ऐसी हाट |

पलड़ा भारी देखकर, दो न किसी को वोट,
उसको कभी न वोट दो, जिसके मन में खोट |

लिए तराजू न्याय का, आँखों पर पट बन्ध,
झूठें ले गंगाजली,  खा  जाते  सोगंध |

 

बिना ज्ञान के आदमी, तोले डंडी मार,

तुलन पत्र से बेखबर,कर न सके उद्धार

कुण्डलिया छंद

=========
युवती हो अथवा युवक, एक तराजू तोल
कालान्तर में देख लों, रहा बराबर मोल |
रहा बराबर मोल, त्याग तो युवती करती
अनजाने घर जाय, वही पर आखिर मरती 
लक्षमण आज दहेज़,तुला पर युवती तुलती  
कटते पंख उडान, न भर पाती वह युवती ||

**************************************************
श्री अशोक कुमार रक्ताले जी  
दोहा गीत
 
बिना तराजू तौल का,
कैसा यह संसार
 
बेच रहे ईमान सब,
लेकर मोटे दाम
रुपयों के इक थर तले,
कुचल रहा है आम
 
सपने निर्धन के प्रभो,
कौन करे साकार
 
कहाँ गए संस्कार सब
जुबाँ हुई क्यों मौन
नारी अस्मत पर ग्रहण,
लगा रहा है कौन
 
किसने नारी जिस्म का
लगा दिया बाजार
 
घोटाले लाखों यहाँ,
अरबों का है खेल
बैठी बंद दुआर कर,
रस्ता देखे जेल
 
न्याय मिलेगा कब प्रभो
कब होगा उद्धार.
**********************************************
सुश्री डॉ प्राची सिंह जी
एक नवगीत...
पूछता है प्रश्न
सहचारित्व मेरा-
क्यों सदा घुलता रहे अस्तित्व मेरा ?
 
गर्व था
जिन लब्धियों पर, सोच पर
-सब नकारीं
मूँछ तुमने ऐंठ कर,
फूल सा कोमल हृदय
बिंधता रहा
‘मैं’ घुसा दिल में तुम्हारे
पैंठ कर I
 
यह सजा है स्त्रीत्व की
या कर्मफल है
जो तिरोहित हर घड़ी अहमित्व मेरा? पूछता है प्रश्न....
 
सब सहेजीं
पूर्वजों की थातियाँ
किरचनें टूटे दिलों की
जोड़ कर,
पंख औ’ पग
बाँध बेड़ी जड़ किये
देहरी में
मुस्कराहट ओढ़कर I
 
नींव के पत्थर सरीखी ज़िंदगी पर
क्यों घरौंदा रेत का,
स्थायित्व मेरा? पूछता है प्रश्न....
 
सप्तरंगी स्वप्न थे
भावों पगे-
पर तुम्हे लगते रहे
सब व्यर्थ हैं,
रौंद कर कुचले गए
हर स्वप्न के
चीखते अब
सन्निहित अभ्यर्थ हैं I
 
नित अहंकृत-
पौरुषी ठगती तुला पर
क्यों भला तुलता रहे व्यक्तित्व मेरा? पूछता है प्रश्न...
******************************************************
श्री सचिन देव जी
तराजू / तुला / पलड़ा / पर चंद दोहे
-------------------------------------------------------
 
जीवन का तो जानिये, यही सरल आधार
एक तराजू पर तुले,  सुखों-दुखों का भार  II 1 II
 
शब्द तोल कर बोलिये, शब्द बड़ा अनमोल 
लगे जिया पर शूल सा, तोल मोल कर बोल II 2 II
 
धन- दौलत के बाँट से, कभी मित्र मत तोल 
बिना मोल मिलता मगर, मित्र बड़ा अनमोल II 3 II
 
मंदिर में इंसाफ के, एक तराजू हाथ 
भेदभाव करता नहीं, रहता सच के साथ II 4 II
 
जीवन में तू पाप का, मत बढ़ने दे भार
नेकी करके खोल ले, स्वर्गलोक  के द्धार   II 5 II
 
लीला है तराजू की, कैसी अपरम्पार
याही से सोना तुले, याही से भंगार  II 6 II
 
एक तुला से लीजिये, जीवन का ये ज्ञान    
तालमेल ऐसा रखें, सब हों एक समान II 7 II      
***********************************************
सुश्री कांता रॉय जी
डंडी तराजू मुक्त हुआ
रात गई सब बात गई
मन पलड़ा उन्मुक्त हुआ
खेला पलड़ा लुका छिपी
डंडी तराजू मुक्त हुआ
साथी अब तुम मत आना
मुझको कोई आस नहीं
मै अब बावली भी नहीं
मै अब कभी उदास नहीं
हृदयी अग्नि बुझ चुकी है
आँच में अब तपिश नहीं
शांत नदी सी बहना है
सागर मिलना रास नहीं
श्यामल मन पलड़े तुलती
दुविधा मन अब ठहर चला
रातों में अग्नि दहक सी
मुझको अब स्वीकार नहीं
आँखों से नींद की दूरी
ना प्रीतम ना मजबूरी
प्रेम मत आना इस गली
मुझको कोई आस नहीं
फागुन ओ मस्त बहारों
कुसुम किसलय मस्त नजारों
चिर निराशा औ आसा में
फागुन की अब आस नहीं
सम तुलनी संतुलित जीवन
डगमग कर अब स्थिर हुआ
संधर्ष हृदय सदय हृदय
डंडी तराजू मुक्त हुआ
************************************
श्री सुशील सरना जी 
चंद दोहे
बोल हिया से तोल के , बोल सदा इंसान। 
बोल बोल में प्रेम है , बोलों  में  भगवान।।
शब्द सरोवर प्रेम का ,लहर लहर में नेह। 
तोल तोल के बोलियो, बोल प्रेम की देह।।
बिन तोले ही बोलते, शब्द प्रेम  में  नैन। 
खा के धोखा प्रेम में ,घन  बरसायें  नैन।।
बिन तोले मिलता नहीं ,कोई भी सामान। 
बिना तौल सामान में , है छिपा बईमान।।
*******************************************
श्री विनय कुमार सिंह जी
आओ खुद को तौलें , समझ के तराज़ू से 
समझें हौले हौले , समझ के तराज़ू से 
कैसे बदले जीवन , दुनियां के मज़लूमों का 
कोई रस्ता खोलें , समझ के तराज़ू से 
बाहर से कुछ और , अंदर से कुछ और 
मीठा सब है बोलें , समझ के तराज़ू से 
कब सीखेगा इंसा , नफ़रत दूर भगाना 
प्यार के रस्ते खोलें , समझ के तराज़ू से 
नारी ही नारी की , क्यों होती है दुश्मन 
भेद यही हम खोलें , समझ के तराज़ू से 
बच्चे सबको अपने , होते कितने प्यारे 
जनक़ भी गर खुश होलें , समझ के तराज़ू से 
धर्म जाति और भेद भाव को आओ करलें दूर 
स्वर्ग के अंकुर बोलें , समझ के तराज़ू से ..
********************************************
सुश्री नीता कसार जी
"पलड़ा" । ग़ज़ल
अरमानों के पेड़ पर,
पत्थर मारते है,इस क़दर,
कि उफ़ तक न निकलती है,
ज़मींदोज़ होकर।
हम अपने अरमानों से
क्यंू बेगाने हुये,
चर्चे हमारी चाहतों के,
अफ़साने हुये।
बड़ा कठिन है दरिया आग का,
पार पाना है नामुमकिन,
फिर भी ज़माने में हम जैसों के,
दर्द पुराने हुये।
रजा क़ुबूल कर, मौला मेरे,
बेवफ़ा न हो हमदम मेरा,
पलड़ा वफ़ा का रहें संतुलित
दिल को प्यार का नज़राना दे ।
***********************************
श्री प्रदीप सिंह कुशवाहा जी
१-
दोहा 
-------
तोल तराजू में रहे , जनता के जज्बात।
जनता तू मीरा बनी , क्यों न बनी सुकरात।।  
धर्म संग अधर्म तुला , बढ़ा पाप का भार । 
पलड़ा डगमग जब हुआ , गयी तराजू हार ।। 
करम गठरी तोल रहे , राधा मोहन राम 
पाप पुण्य गिनती करें, भूले सारा काम
मिला आशीष आपका , जागे मेरे भाग 
***************************************** 
श्री अरुण कुमार निगम जी
दोहा छन्द  - "तुला / पलड़ा / तराजू "
तुला-दण्ड  निष्पक्ष है, पलड़े द्वय बेजान
दुरुपयोग करने तुला,क्यों नाहक नादान |
तुला-दंडिका मारता , अरे मूर्ख मक्कार
उधर हो  रहा हर घड़ी, तुलन-पत्र तैयार |
जोड़ रहा सम्पत्तियाँ, समझ स्वयं को दक्ष
बुरे  कर्म से  बढ़  रहा , उधर  देयता  पक्ष |
धूल झोंककर आँख में, तौल रहा सामान
इधर  तराजू  तौलता ,  है   तेरा   ईमान |
आँखों  पर  पट्टी  बँधी, एक  तराजू हाथ
बुत  देता  संदेश यह ,चलो सत्य के साथ |
******************************************
सुश्री सविता मिश्रा जी 
तुला-तुला कर रहा
तुला का तू
जाने क्या मोल
न्यायाधीश की कुर्सी के पीछे
अटकी जिसकी साँसे
उससे जाके बोल |
तुला पर तूला जो
साँसे वह रखे रोक
सजा सुनते ही उसके
पड़ जाए घर में जो शोक |
पैसे कौड़ी का मोह नहीं
ना ही रखे घर द्वार
बेच के सब ले आये
न्याय तराजू में रख सब हार |
दर-दर डोला फिरे
न्याय मिले कहीं तो
पर मिलते मिलते न्याय
जिन्दगी गया हार वो |
जिन्दगी मरण की तुला पर
पड़ गयी मौत भारी
मौत जैसे ही मिली
हुई कफन की तैयारी
सब कुछ तो लुट गया|
न्याय तुला सुरसा मुख में सब झोंके
रह गया वह अब तो कंगाल होंके |
कफन भी नसीब नहीं अब 
साहब था कभी डीके 
मरना अच्छा हैं फिर
क्या करेगा कोई जीके |
न्याय तुलती हैं पट्टी बांधे आँख
छूट जाता वह जो लुटाता लाख |
न्याय चक्रव्यूह बनी हमेशा 
छूट न पाया कभी अर्जुन सरीखा
तुला पर जो कभी भी तूला 
न्याय तुला क्या कभी वो भूला |
***********************************

श्री सत्यनारायण सिंह जी
मूक होकर तौलता नित, द्रव्य का जो भार|
नाम से उसको तराजू, जानता संसार|
धर्म न्यायिक कर्म जिसका, धैर्य करता लुब्ध|
न्याय देवी कर सुशोभित, देख जग है मुग्ध|१|

.

शुचि तुला हो ज्ञान की औ, दिव्य पलड़े कर्म|

धैर्य रुपी दंडिका पर, संतुलित हो धर्म|
ईश में विश्वास का जब, संग हो शुभ बाट|
प्रेम करुणा का लगे तब, विश्व सुन्दर हाट|२|

************************************************

श्री रमेश कुमार चौहान जी
दोहा गीत

ये अंधा कानून है,
कहतें हैं सब लोग ।
न्यायालय तो ढूंढती, साक्षी करने  न्याय ।
आंच लगे हैं सांच को, हॅसता है अन्याय ।।
धनी गुणी तो खेलते, निर्धन रहते भोग । ये....
तुला लिये जो हाथ में, लेती समता तौल ।
आंखों पर पट्टी बंधी, बन समदर्शी कौल ।।
कहां यहां पर है दिखे, ऐसा कोई योग । ये...
दोषी बाहर घूमते, कैद पड़े निर्दोष ।
ऐसा अपना तंत्र है, किसको देवें दोष ।।
ना जाने इस तंत्र को, लगा कौन सा रोग । ये...
कब से सुनते आ रहे, बोल काक मुंडे़र।
होते देरी न्याय में, होते ना अंधेर ।।
यदा कदा भी ना दिखे, पर ऐसा संयोग । ये...
न्याय तंत्र चूके भला, नही चूकता न्याय ।
पाते वो सब दण्ड़ हैं, करते जो अन्याय ।।
न्याय तुला यमराज का, लेते तौल दरोग । ये...    (दराेग-असत्य कथन//झूठ)

Views: 4291

Reply to This

Replies to This Discussion

यथा निवेदित - तथा प्रस्थापित

आ. योगराज जी सादर 

        आ. रमेश चौहान जी की संशोधित रचना शायद  प्रस्थापित नहीं हुई  है. 

 

श्रद्धेय प्रभाकारजी, मेरी संशोशित रचना प्रतिस्थाति करते  हुये शायद कोई चूक हो गई है, जिससे ना ही मूल रचना है, ना ही संशोधित रचाना । सादर सूचनार्थ

अब देखिये।

ओबीओ खोलते ही जानकारी हुई किसमारोह समापन से पूर्व ही सभी रचनाओं का संकलन किया जा चुका है | इस द्रुतगामी एक्सप्रेस मंच और उसके संपादित करने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय श्री योगराज भाई जी | मेरे दोहे और कुण्डलिया को संशोधित रूप में प्रस्थापित करने के कृपा कर सादर कृतार्थ करे - 

बूंद बूंद अनमोल (दोहें)

==============

सब धर्मों का सार है, सत्य बड़ा अनमोल,
सब धर्मो के पंथ को, एक तुला पर तोल |

मानव का जीवन सदा, होता है अनमोल,
कोई भौतिक संपदा, उसे न पाए तोल |

माँ ममता के प्रेम का, मोल बड़ा अनमोल
दुनिया भर की संपदा, करे न पूरा तोल |

धरती नीरव जल बिना, समझो इसका मोल,
पानी खर्चों तोल कर, बून्द बून्द अनमोल |

बिन तोले ही बिक रहा, देखों तत्व विराट,
कचरा भी बिकता यहाँ, जग की ऐसी हाट |

पलड़ा भारी देखकर, दो न किसी को वोट,
उसको कभी न वोट दो, जिसके मन में खोट |

लिए तराजू न्याय का, आँखों पर पट बन्ध,
झूठें ले गंगाजली,  खा  जाते  सोगंध |

 

बिना ज्ञान के आदमी, तोले डंडी मार,

तुलन पत्र से बेखबर,कर न सके उद्धार

कुण्डलिया छंद

=========
युवती हो अथवा युवक, एक तराजू तोल
कालान्तर में देख लों, रहा बराबर मोल |
रहा बराबर मोल, त्याग तो युवती करती
अनजाने घर जाय, वही पर आखिर मरती
लक्षमण आज दहेज़,तुला पर युवती तुलती  
कटते पंख उडान, न भर पाती वह युवती ||

हार्दिक आभार आ० लडीवाला जी।
यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित।

शुक्रिया आदरणीय 

आप सभी की रचनाएं पढने को मिली .सारे के सारे एक से बढ़ कर एक अनमोल मोती और  ये संकलन मोतियों की अनमोल माला .बहुत बधाई . मैं साहित्य की इस विधा में बिलकुल मूढ़ हूँ पर  पढ़ कर बहुत  आनंद आया .वाह !

//मैं साहित्य की इस विधा में बिलकुल मूढ़ हूँ //

किस विधा में आदरणीया रीताजी ?

आदरणीय ओमप्रकाश जी का सिंगल हाइकू नहीं दिख रहा है।

भाईजी, वो तो एक सैम्पल था.

दिखना चाहिए था ?

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
21 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
21 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
21 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service