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राईट टू रिकॉल-राईट टू रिजेक्ट

अन्ना हजारे की एक जबरदस्त मांगों में से एक है: राईट टू रिकॉल. यह एक ऐसी जनवादी मांग है जिसके खिलाफ सारे सांसद, विधायक और उनके लग्गू-भग्गुओं, दलालों का एक तांता लगा हुआ है. भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके आन्दोलन ने यह तो दिखा ही दिया है कि शासक वर्ग भ्रष्टाचार जैसे सर्वव्यापी कुव्यवस्था के खिलाफ लड़ने में किस कदर उनपर हमला सा बोल दिया था. सारे के सारे एक जुट थे, हलांकि भारी जनदबाव के कारण कुछेक उनके बीच के लोग भी अन्ना हजारे के साथ हो लिये थे. परन्तु अब उन्होंने जो एक नई मांग के साथ आन्दोलन का बिगुल फूंका है, वो जबरर्दस्त क्रांतिकारी सोच है, जिसके खिलाफ सारे के सारे शासक वर्ग एक जुट है. कहना न होगा राईट टू रिकॉल एक ऐसा नियम है जो सारे सांसदों और विधायकों के मन में एक डर पैदा कर दिया है. अब तक तो उनके लिए पांच सालों तक मौज ही मौज था, चाहे कुछ भी वे करते रहे. जनता उनका कतई कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी, सिवाय रूपम पाठक जैसे अपवादों के. परन्तु ये नई कानून अगर बन गई तो उनका सुख-चैन छिन जायेगा क्योंकि इन जीते हुए तथाकथित जनप्रतिनिधियों को आम जनता से कोई मतलब तो है नहीं. एक तरफ जहां अन्ना हजारे राईट टू रिकॉल की मांग कर रहे हैं वहीं शासक वर्गो के बीच एक नई धारा पैदा हो गई है, यह कहते हुए कि चाहे कुछ भी हो जाये, सरकार अल्पमत में ही क्यों नहीं हो जाये परन्तु चुनाव नहीं करवाये जाने चाहिए, बल्कि उसी में उलट-फेर कर सरकार बनाई जानी चाहिए. इसी से पता चलता है कि शासक वर्ग चुनाव जैसी संवैधानिक संस्था से कितनी ज्यादा डरी हुई रहती है. अन्ना हजारे की इसी मांग के साथ यह भी जुड़ा हुआ है राईट टू रिजेक्ट. शासक वर्ग इसे भी मानने से इंकार कर रही है. शासक वर्ग का कहना है कि यह संभव नहीं है. क्यांेकि वह जानती है कि चुनाव में वैसे लोग ही खड़े होते हैं जनता जिसे पसन्द नहीं करती. यदि यह कानून बन गया तो शासक वर्ग भारी मुश्किल में पड़ जायेगा. तमाम धन्ना सेठों, ठेकेदारों की दुकानदारी बंद हो जायेगी. जनता का राज कायम होने लगेगा. इसलिए शासक वर्ग का कहना है कि जिसे वोट नहीं देना हो नहीं दें, परन्तु जितने ही वोट डाले जायेंगे विजेता का चुना जाना उसी मामूली से वोट से ही किया जायेगा.स्पष्टतः, राईट टू रिकॉल और राईट टू रिजेक्ट जैसी जनवादी मांगों के साथ हम सभी को खड़े होना चाहिए.

 

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सही मायने में लोकतंत्र तभी कायम होगा , जब  अन्ना की मांगें मान ली जायेंगी  ! लेकिन  उस स्थिति की कल्पना से  ही 
समस्त नेता बिरादरी की हवा खिसकने लगती है ,  और वे अपनी धूर्तता  दिखाने से बाज नहीं आते  ! 

अच्छी बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय कि पहल पर राईट टू इग्नोर  हमें नन ऑफ़ दीज  के रूप में मिल  चुका है I एक प्रकार से राईट टू रिजेक्ट तो हमें मिल ही गया  I  यह भी इसलिए संभव हुआ कि आम चुनाव के साथ ही यह किया जा सकता है  I  पर रिजेक्ट के मामले में  हर रिजेक्शन  पर चुनाव करा पाना हार्ड नट  है I  हमें अभी प्रस्तावित पहल के इफ और बट को परखना होगा I  शायद आप  सहमत हो  I  धन्यवाद  I

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