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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

विषय : "उजाला"

आयोजन 11 अक्टूबर 2025, दिन शनिवार से 12 अक्टूबर 2025, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 11 अक्टूबर 2025, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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मंच संचालक

मिथिलेश वामनकर
(सदस्य टीम प्रबंधन)
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स्वागतम

धन्यवाद आदरणीय 

ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।

दीपोत्सव

क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की?

दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी?

क्या इतने भर से सकल तामसिक मिट जाएगा ?

क्या हो जाएगा शुभ ऊर्जा संचार जगत में?

सोचो सोचो !

दीप प्रतीकों में आए हैं परंपरा से,

समझो भी मंतव्य कभी तो ऋतम्भरा से।

विजय पराजय तक ना किंचित उत्सव सीमित, 

आत्म मंत्रणाओं से संबंधित, 

यह विस्तारित।

संश्लिष्ट सब भाव, 

नहीं केवल स्वर व्यंजन।

धन धान्य और वैभव से भी आगे का मंथन।

इतने पर क्या कुछ सूझा है?

तेल, दिया, बाती, पावक से कुछ बूझा है?

या कि अब भी सारा ही कुछ बुझा बुझा है?

यह दीपोत्सव,

नहीं अमावस को पूनम करने का उत्सव।

सोचो सोचो !

जगमग दीपक घर आंगन में

जितने चाहे उतने बारे, 

लेकिन कितने मन अंधियारे,

अब के क्यों ना ऐसा कर लें

सब दीपों की जोत कहीं भीतर तक भर लें।

अंतर्मन के दीप जलाकर करें उजाला।

(मौलिक व अप्रकाशित)

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

गजल
**
किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगे
अँधेरों    को   हरने  उजाला  बुनेंगे।१।
*
किरण फूटकर खुद निकलेगी हमसे
अमावस से  घबरा  नहीं  सिर धुनेंगे।२।
*
निवाला   तजेंगे   बढ़ेंगे  वहीं  को
करुण चीख कोई अगर हम सुनेंगे।३।
*
कहो आँधियों से न दीपक बुझाना
दबा राख  भीतर  का शोला चुनेंगे।४।
*
चलो लौटकर चाँद को फिर बुलाएँ
कहाँ तक अमावस का जाला बुनेंगे।५।
*
***
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें-

किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगे

अँधेरों को हरने उजाला बुनेंगे।- बहुत बढ़िया मतला हुआ है। अंधेरों को हरकर उजाला बुनने का संदेश प्रेरणादायक है।

किरण फूटकर खुद निकलेगी हमसे

अमावस से घबरा नहीं सिर धुनेंगे। यहां उला में मिसरा बेबहर हो रहा है। इसे बहर में यूं प्रयास किया है, " किरण फूट हमसे निकलने लगेगी"

निवाला तजेंगे बढ़ेंगे वहीं को

करुण चीख कोई अगर हम सुनेंगे। - बहुत खूब, दूसरों की पीड़ा सुनकर उसे कम करने की दिशा में कदम बढ़ाना मानवीयता को सुदृढ़ करता शेर।

कहो आँधियों से न दीपक बुझाना

दबा राख भीतर का शोला चुनेंगे। इस शेर के पर पुनर्विचार निवेदित है।

चलो लौटकर चाँद को फिर बुलाएँ

कहाँ तक अमावस का जाला बुनेंगे। बहुत खूब, चाँद को फिर से बुलाने और अमावस के जाल को तोड़ने की बात एक नए युग की शुरुआत और निराशा को पीछे छोड़ने की प्रेरणा।

इस प्रस्तुति हेतु पुनः हार्दिक बधाई। सादर

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार

//

कहो आँधियों से न दीपक बुझाना

दबा राख भीतर का शोला चुनेंगे। इस शेर के पर पुनर्विचार निवेदित है।//

***

कहो आँधियों से न दीपक बुझाना

अँधेरो की अब हम नहीं कुछ सुनेंगे।

यह बदलाव किया है मार्गदर्शन करें

बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू
नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे

कुंडलिया 

उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर

अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर

खूब मचाएं शोर, न देखें पीछा आगा

देश भी टुकुर टुकुर,देखे उनको अभागा

लोकतंत्र के खम्भे, चम्मच बन फेरें माला

ढूंढती है जनता,किधर को गया उजाला

मौलिक एवं अप्रकाशित 

आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

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