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वो कहते हैं तू पत्थर है।

वो कहते हैं तू कट्टर (पत्थर) है
बहर:-1222-1222-1222-1222

नहीं मिलती तबीयत तो ,वो कहते हैं तू पत्थर है
मगर जाना नही उसने, की कितना मन समंदर है

हुई हरकत बुरी हमसे ,बदलने की जो कोशिस की
तभी मालुम हुआ हमको, खिलाड़ी तो सितमगर है

सिला अपनी मुहब्बत का,लिखा पन्ने पे जब मैंने
खुदा भी रो पड़ा बोला, धरा का तू सिकंदर है

जो मुंसिफ घर गया उनके, उधारी में दिया लेने
चिरागां हंस के बोला तब,अँधेरा तेरे अंदर है

बताओ रास्ता मुझको ,हवा पानी जरा बोलो
लुटा हूँ मैं मुहब्बत में ,मुहब्बत क्या बवंडर है

अप्रकाशित/ मौलिक
आमोद बिंदौरी

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 7, 2015 at 7:22am

आदरणीय , आपको हर प्रशन का जवाब मिल जायेगा और गलतियाँ भी कम हो जायेंगी अगर आप - इस लिंक मे जा कर गज़ल के विषय में दी गई जानकारियों का अध्यनयन कर लें , इसी मंच मे विस्तृत जानकारी ' गज़ल की बातें ' मे दी गई हैं , लिंक नीचे दे रहा हूँ -
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn  , दो चार बार  सभी पाठों को पढ़ लें , आप स्वयं सब समझ जायेंगे ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 4:15pm
ऐसा मोहब्बत222 मुहब्बत 122 वैसे उच्चारण तो मालुम ही है की मालूम है
Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 4:12pm
अगर गलत है तो जरूर बदलूँगा
Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 4:11pm
सर तुम को 2 गिन लेते है उसी को आधार मान मैंने मालुम22 गिना है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2015 at 4:02pm

आ. आमोद भाई ,  सही वर्तनी शब्द की - मालूम  = 221   है , आपने- मालुम 22  ले लिया है , इसी बात की तरफ आ. मिथिलेश भाई ने इशारा किया है ॥

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 3:10pm
आ गिरिराज सर ,आ मिथलेश सर,आ कांता दीदी आप सभी का आभार नमन

सर मैं गौर किया हूँ पर मुझे कुछ समझ नही आया कृपया प्रकाश करे क्या कमी है
Comment by kanta roy on November 4, 2015 at 9:41am

नहीं मिलती तबीयत तो ,वो कहते हैं तू पत्थर है
मगर जाना नही उसने, की कितना मन समंदर है----वाह !!! क्या खूब लिखते है आप आदरणीय आमोद जी , बहुत खूब ! पढ़कर मन आनंद हो गया। बधाई हो।


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2015 at 6:26pm

आदरनीय आमोद भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई , आ. मिथिलेश भाई जी की बात का ख़याल कीजियेगा ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2015 at 12:45pm

आदरणीय आमोद जी बह्र-ए-हजज़ को खूब निभाया है इस मिसरे //तभी मालुम हुआ हमको, खिलाड़ी तो सितमगर है// को देख लीजियेगा. बहुत बहुत बधाई . सादर

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 2, 2015 at 2:42pm
ख़ुदा भी रो पडा बोला तज़ुर्बे तू सिकन्दर है

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