For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


आँखों में भरे खूँ लिए तलवार खड़ा है 
करने को मुझे कत्ल मेरा यार खडा है

.
दे दे तु मुझे अपनी दुआओँ का सहारा
चोखट पे तेरी आज ये बीमार खडा है

.
जाने दे मुझे मौत की आगोश मे हमदम
क्योँ बनके मेरी राह मे दीवार खडा है

.
मरकर ही सही  आज ये एजाज मिला तो 
करने को मेरा आज वो दीदार खडा है

.
गर मुझको मिटाने का वो रखते हें इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है.

Views: 629

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 16, 2012 at 2:39pm

bahut bahut shuqriya sooraj ji

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 16, 2012 at 2:33pm

माशाल्लाह ! क्या खूब कहा है !

हाथोँ मे लिये खूँ भरी तलवार खडा है
करने को मुझे कत्ल मेरा यार खडा है॥

बहुत जानदार मतला है भाई जान !

Comment by वीनस केसरी on March 16, 2012 at 1:58pm

सदैव स्वागत है मित्रवर

Comment by राज लाली बटाला on March 15, 2012 at 2:09am

गर मुझको मिटाने का वो रखता हे इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है. ~~


गर मुझको मिटाने का वो रखते हैं इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है.  !! khoob !!rahi !! 

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 14, 2012 at 4:35pm
वीनस जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपके मार्गदर्शन से मेरी रचना भी दोष रहित हो गयी और मेरे इल्म मे भी इजाफा हो गया
आपका बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 14, 2012 at 4:29pm
आप हजरात को मेरी रचना पसंद आई मेरी मेहनत कामयाब हो गयी बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 14, 2012 at 3:34pm

श्री अहमद जी, सादर. अति सुंदर ग़ज़ल. निम्न पंक्तियों के लिए खास बधाई :

जाने दे मुझे मौत की आगोश मे हमदम
क्योँ बनके मेरी राह मे दीवार खडा है.

Comment by Abhinav Arun on March 14, 2012 at 3:11pm

अच्छे शेर कामयाब ग़ज़ल हसरत साहब दिली मुबारकबाद  !!

Comment by वीनस केसरी on March 14, 2012 at 1:17pm

गर मुझको मिटाने का वो रखता हे इरादा
इस मिसरे को यूं कर लें तो शेर और खूबसूरत हो जायेगा

गर मुझको मिटाने का वो रखते हैं इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है.
-------------------------------------------------------

किसी मतले के अतिरिक्त जब शेर के मिसरा उला के अंत में रदीफ की तुकांतता आ जाती है तो तकाबुले रदीफ का दोष पैदा होता है
आपके शेर में देखें
मर कर के मुझे आज ये एजाज मिला है
करने को मेरा आज वो दीदार खडा है

इस वजह से उला के अंत को बदलना पड़ेगा
इसके दो भाग है उस पर फिर कभी चर्चा की जायेगी
(बहुत जरूरी होने पर और किसी और तरीके से शेर के कथ्य के आधार पर खराब हो जाने की दशा में तकाबुले रदीफ में कुछ छूट भी दी गई है मगर उसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब शेर में कोंई और तरीका ना बच रहा हो या किसी और तरीके से लिखने पर शेर में अर्थ का अनर्थ हो जा रहा हो ... )

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 14, 2012 at 8:57am
वीनस भाई तलाबुले रदीफ के दोष के बारे मे भी थोडा समझा देँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service