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सुनो स्त्री !

सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !

 

तेज हुई सांसों की लय पर थिरकती छातियाँ

प्रेम कहेंगी तुमसे -

संगीत और नृत्य के संतुलन को !

सामंजस्य जीवन कहलाता है !

(ये तुम्हे स्वतः ज्ञात होगा)

सम्मोहन टूटते है अक्सर -

बर्तन फेकने की आवाजों से !

 

आँगन और छत के लिए आयातित धुप

पसार दी जाती है ,

शयनकक्ष की मेज पर !

रंगीन मेजपोश आत्ममुग्धता का कारण हो सकते है ,

जब बुझ जाएगा तुम्हारी आँखों का सूरज !

(अगर डूबता तो फिर उग भी सकता था)

 

थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -

प्रतिरोध की आदिम कला !

इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा !

 

तो सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

बस , ह्रदय कर्ज़दार न हो
तुम्हारे कान गिरवी न रख दिए जाएँ !
(होंठ उम्र भर सूद चुकाते रहेंगे )

दूब ताकतवर मानी गई है ,

कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से !

बीच समुन्दर ,

अकेला जहाज ,

मस्तूल पर तुम !

तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !

थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !

 

 

 

……………………………...….. अरुन श्री !

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 11:52am

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !

अति सुन्दर 

बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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