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            मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी जानते थे|

            भैया उस समय घर पर नहीं थे, तीन-चार दिन के लिए कहीं गए थे| याद नहीं आ रहा  कि कहाँ गए थे| मैंने ये बात अपनी माँ से कही तो उन्होंने मुझे अगले दिन वहां जाने की अनुमति दे दी| मुझे ढंग से गाडी चलाने नहीं आती थी| अतः शाम को ही मैंने गाँव के इन्द्र देव चाचा से बात कर ली और वो राजी भी हो गए जाने के लिए| हमारे और उनके घर से खासी मित्रता थी|

             उनका घर हमारे घर से तकरीबन तीस किलोमीटर दूर था| घर के लोगों ने कहा की वहां जाकर तुम लोगों को कुछ काम-वाम भी करना पड़ेगा , सही भी था लड़की की बारात आ रही थी| और रीति-रिवाज के तहत जब किसी लड़की के घर बारात आती है तो गाँव में सब लोग मदद के लिए आगे आते है|

             हम दोनों लोग सुबह करीब नौ बजे घर से निकल गए थे| रास्ता सही नहीं था, सड़कें उखड गयीं थी| उस राह पर पैदल चलना भी मुश्किल था, यद्यपि  वह मुख्य मार्ग था| हम लोग कुछ आगे जाकर कट लिए, एक खडंजा पकड़ लिए| अब पहले से कहीं आराम था| सुनसान सड़क पर हम लोग चले जा रहे थे| कुछ आगे जाने पर हमें जो दिखाई पड़ा  उसे देख कर हम रुक गए| खडंजे से होकर एक पगडंडी बागीचे में जाती थी| बगीचा  बहुत बड़ा था| बहुत से लोग एकत्रित थे| भीड़ कुछ नहीं तो पाँच सौ  रही होगी| जैसे गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़े, सारे लोग उसी भीड़ की तरफ खींचे चले जा रहे थे|

             हमने भी गाड़ी को पगडण्डी पर उतार लिया और बागीचे के एक तरफ गाड़ी खड़ी कर दी|
            लोग बैठे थे, शांत तालाब की तरह,और जैसे छोटी मछलियाँ भरी मात्रा में उतरातीं हैं, उसी तरह की कानाफूसी चालू थी| बागीचे के बीच से थोडा हट कर एक बड़ा सा वर्गाकार क्षेत्रफल गोबर से लिपा हुआ था| उसमें कई छोटी-बड़ी मूर्तियाँ स्थापित की गयी थी| माटी की बेदीयाँ  वहाँ बनायीं गयी थीं|

            देख कर यह समझ  में आ रहा था की कोई  पूजा  होने वाली है| लेकिन कैसी पूजा? यह हमारे लिए कौतुहल का विषय था| अंततोगत्वा  मैंने एक बुजुर्ग  से पूछ  ही लिया कि  "बाबा  ये कैसी पूजा होने वाली है| इतनी भीड़ क्यों इकठ्ठा हुई  है|"

             बूढ़े दादा ने कहानी बतानी शुरू की तो हम सुनाने में ध्यानमग्न हो गए|

            "बेटा, जो गाँव दिखाई दे रहा है" दक्षिण की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा, " उसके पीछे एक विशाल बरगद का पेड़ है, उसी पर एक भूत रहता है | रात को वह बरगद को कभी-कभी बहुत जोर से झकझोरता है | आने जाने वालों को पहले वह बहुत परेशान करता था | परन्तु अब वह परेशान नहीं करता |' दादा ने अंतिम बात जोर देकर कही|

            "फिर बाबा", मैंने उत्सुकता वश पूछा| उन्होंने आगे बात बतानी शुरू की|


             "बेटा, पिछले महीने बरगद के किनारे वाले पोखरे में एक लड़की को उसने पकड़ कर डुबो दिया | लोग देखते ही रह गए | लड़की उसमे डूब कर मर गयी | मछली  मारने  वाले सभी  लड़के वहां से भाग गए | देखने वाले बताते है कि पानी  में बड़ा-बड़ा बुलबुला  निकलता था|पानी अचानक  शांत  हो जाता, अचानक घेरदार लहरें  पैदा होजाती |

              "आगे बाबा" मेरी तरह सुनने वालों में से एक अन्य लड़के ने कौतुहल वश पूछा,

               “बेटा, लड़कों को हमने बहुत रोका था, बहुत मन किया था, मत जाना मछलियाँ पकड़ने, लेकिन वे न माने| आखिर चली ही गयी एक जान |"

               "पर बाबा, लड़की को किसी ने बचाने का प्रयास नहीं किया |" मैंने सशंकित होकर पूछा|

                "तुम नहीं समझोगे बेटा! कौन जाएगा अपनी जान देने| यह  भूत भी इसी तालाब में डूब कर मरा था| लोगों ने ये भी सुना है कि रात को ये जान मांगता था|"


                "बाबा, लड़की तो चली गयी, जान तो उसे मिल गयी, फिर ये पूजा क्यों ?"

                "बेटा, उसके मरने के दुसरे ही दिन, परधान जी कि बहू और बेटी सुबह खेत से आ रही थी | बिल्कुल अँधेरा था | उसी समय एकाएक बहू को वह दिखाई दी | उसे पकड़ ली | अब छोडती ही नहीं है| बहू तभी से बीमार है |कभी हँसती है तो कभी दहाडें मार कर रोने लगती है | कभी-कभी तो नाचने भी लगती है | कभी कहती है, मै बिना जान लिए नहीं जाने वाली| कहीं कुछ अशुभ न हो जाय, फिर से किसी कि जान न चली जाय, इसलिए सोखा जी आ रहें है |"

                 मैंने चाचा से कहा कि आज देख ही लिया जाय कि कैसे पूजा होगी, और वो भी सहमत हो गए| जनता सोखा जी के आने इन्तजार कर रही थी| मै भी बहुत खुश था| नामी-गिरामी सोखा हैं| बूढ़े बाबा ने हमें बताया कि बहुत बड़े-बड़े भूतों को इन्होने बाँध कर रखा है| और भी अनेक बातें बतायीं|

                 लगभग एक बजे बजे एक चमचमाती कार आई| कार को बागीचे में आने के लिए विशेष रूम से खेत में ही लीक बनायीं गयी थी| उसमे से एक हृष्ट-पुष्ट अधेड़ उम्र युवक, धवल धोती में, शरीर पर धोती के अलावा केवल एक खादी की चादर डाले हुए निकला| चेहरे पर भयानकता,आँखें लाल-लाल, बड़ी-बड़ी भौंहे, माथे पर चौड़ा तिलक था , जो संभवतः राख और चन्दन मिश्रित था| पैरों में खडाऊं थे|

                "यही सोखा जी है", बूढ़े बाबा ने हमसे कहा|

                सोखा जी कार से उतरते ही खूब जोर की साँस खींचे, और चौके में आ गिरे|
                सारी जनता चुप थी| लोग केवल सोख जी के क्रिया कलापों को उत्सुकता भरी नजरो से देख रहे थे| सोखा जी कैसे आँख बंद करते, कैसे धीरे-धीरे खोलते, फिर हाथ को भींचते हुए जमीन पर प्रहार करते| पूजा सामग्री पेश होने लगी थी| बहू भी चौके में आकर यथास्थान बैठ गयी थी| सोखा जी ने मंत्र जाप शुरू किया और चौके के बायीं तरफ बैठी महिलाओं ने देवी गीत|

                सब कुछ बहुत रोचक लग रहा था| बहू धीरे-धीरे झुमने लगी| तरह-तरह की अजीब-ओ-गरीब हरकते करने लगी| मैंने ऐसा सुना तो बहुत था, पर साक्षात् दर्शन का लाभ पहली बार उठा रहा था| मेरी उत्सुकता बढती ही जाती थी| करीब आधे घंटे तक वह झूमती रही, कुछ न बोली| इधर पूजा शुरू थी| कुछ समय बाद सोखा जी के इशारे पर देवी गीत बंद हो गयी| सोखा जी मंडप में इधर से उधर पैंतरे बदल रहे थे| कभी इस मूर्ति के पास तो कभी उस मूर्ति के पास| विशाल जन समूह शांत सागर की तरह था| कोई आदमी कुछ न बोलता| इससे तो अधिक आवाज रात के घनघोर सन्नाटे की होती है| कभी-कभी सोखा जी की गरज  सुनाई पड़ती थी|

               आगे क्या होगा? कैसे भागेगा भूत? अभी कौन सी प्रक्रियाएं होगी? मै यही सोच रहा था, और मंडप में चल रही गतिविधियों  को देख रहा था| अचानक एक और घटना घटी| मैंने क्या, सबने देखा, सोखा जी ने एक बकरे को मंडप में लाने का आदेश दिया| धोती में, बलिष्ट काया वाले दो लोग, जिन पर रौबदार मूंछें  भी थी, बकरे को मंडप में ले आये| शराब की बोतलें भी मंडप में लायी गयीं|


               सोखा जी ने बहु से कहना शुरू किया, " तुने आज तक इस गाँव को बहुत संकट में डाले रखा है | मै तुमसे कहता हूँ की छोड़ दे सबको | तुझे जीव चाहिए तो ले ले बलि, सबको मुक्त कर संकट से | वरना अच्छा नहीं होगा | अगर तुने गाँव नहीं छोड़ा तो मै तुम्हे नहीं बक्शुंगा |  सोखा जी व्याखान शुरू था| मै, निरीह प्राणी बकरे को देख रहा था| वो क्या कर रहे थे, मेरा ध्यान हट गया था| एक बड़ा सा स्वस्थ बकरा, टिका लगा था| वो अनजान प्राणी, बेचारा क्या जानता था की मुझे बहुत जल्दी ही दुनिया छोड़ देनी है| वो तो चना खाने में ही मशगूल था|

 

                मेरी नज़र इन्द्रदेव चाचा की तरफ फिरी, उनकी नज़र केवल बकरे पर ही टिकी थी| मै भी यही सोच रहा था की यदि भुत या चुड़ैल को जीव चाहिए तो क्या वो केवल एक बकरे की बलि से संतुष्ट हो जायेंगे| यदि हाँ तो वे पहले ही क्यों न बकरे को ही पकड़ लेते हैं| उसे ही मार डालते है| या ये मनुष्य ही स्वार्थी है जो निज रक्षा के लिए एक बेजुबान को मार देता है| क्या एक बकरे की बलि से पूरा गाँव चुडैल से मुक्त हो जाएगा| मुझे इसके बारे में तो ज्यादा पता नहीं था| मैंने सोच की अगर ऐसा कने से गाँव बच सकता है तो फिर ठीक है|

 

               अचानक सोखा जी की एक हरकत ने हमारा ध्यान अपनी तरफ खिंचा| वो बोतल खोलकर बहु को जबरदस्ती पिलाने की चेष्ठा करते| बहू ने पिने से इनकार कर दिया| सोखा ने लोगो को समझाते हुए कहा," देख रहे आप लोग, ये चुडैल बड़ी जिद्दी है |" पूरी जनता चुप होकर तमाशा देख रही थी| पूजा शुरू थी| सोखा जी ने सबको संकेत दिया, " मै ज्यों ही शराब को इस नीच के मुँह से लगाऊंगा, आप लोग आँखे बंद कर लीजियेगा |" , बलि देने वाले आदमियों से बोले," बहू ज्यों ही बोतल मुँह से छुएगी तुम बलि दे देना |"

                सोखा जी ने महिलाओं की तरफ देवी गीत गाने का संकेत दिया| देवी गीत शुरू हो गयी थी| सोखा जी पूजा करने लगे| दशांग इत्यादि का धुंवा पुरे मंडप में फ़ैल गया था| सब तरफ धुंवा ही धुंवा| सोखा जी की हरकते चालू थी| वो मन्त्र पढ़े जा रहे थे, और कभी मंडप के इस कोने तो कभी मंडप के उस कोने| कभी इस मूर्ति के पास तो कभी दूसरी के पास| अचानक उन्होंने शराब की बोतल उठाई| बहू लगातार झूम रही थी| सोखा जी बहू की तरफ बढे| बलि देने वाले मनुष्यों की तरफ देखा, और फिर जनता की तरफ| लोगो ने अपनी आँखे बंद कर ली| मैंने भी अपनी आँखे बंद की|

                 एक बहुत जोर की थप की आवाज सुनाई दी, फिर धम्म की| सबने अपनी आँखे खोल ली| सब हैरान थे| सब अचरज भरी नजर से वो नजारा देख रहे थे| मेरी बगल से चाचा गायब थे| वे मंडप में थे| उनके हाथ में गड़ासा था| उनके जोरदार थप्पड़ से सोखा जी जमीन पर थे| चाचा सोखा जी के तरफ गड़ासा ताने कह रहे थे, " बोल, जब तू जानता था की ये मामला बहुत बड़ा है, तुम्हारे बस की बात नहीं है तो तुने रुपयों के चक्कर में इसे अपने हाथ में क्यों ले लिया | मै तुम्हारी बलि दूंगा तब चुड़ैल भागेगी |" मेरे सहित सब जनता हैरत में थी| चाचा ये क्या कह रहे थे| क्या वे जानते है की ये कैसा मामला है| क्या उन्हें भी सोखैती आती है| सोखा जी हाथ जोड़ लिए, और पाँव पकड़ कर गिड़गिडाने हुए कहा, " सरकार मुझे माफ़ कर दीजिये | आज से मै ये काम नहीं करूँगा |"

                 "चल तू अब अपनी और चुड़ैलों की हकीकत बता | तभी ये जनता चाहे तो तुझे माफ़ कर सकती है |"
                   और मंडप से बाहर आते ही मुझे कहा की मै पुलिस को फोन करूँ| मैंने वैसा तुरंत कर दिया|

सोखा ने जब हकीकत बतानी शुरू की तो लोग हैरान रह गए, क्या ऐसा भी होता है?

                   "हमारा एक समूह है | हम में से कुछ लोग रातों को घूमते हैं और लोगों को डरातें है | हम अधिकतर महिलाओं को अपना निशाना बनाते है | पता करते है की किस गाँव में किससे लोग डरतें  है, हमारे आदमी वैसा ही भेष बदल लेते हैं | महिलाऐं अक्सर डर जाती है | और मानसिक रूप से बीमार हो जाती है | दिमाग सही ढंग से काम नहीं करता है | कभी कभी हमारे आदमी पेड़ों पर चढ़ कर हिलाते हैं | लोग उन्हें भूत समझ जाते है | डर जाते हैं | हम लोग ही भूतों का गलत ढंग से प्रचार करते है| डरा हुआ मनुष्य जैसी भूत की बात सुनता है उसके दिमाग में वैसी ही तस्वीर बनती है|"  

                 सोखा इस से आगे अपनी बात बढा पाते, जनता के सब्र का बाँध टूट गया| जनता उनके ऊपर टूट पड़ी| पीटना शुरू कर दिया| उनमे से कुछ लोग भागना चाहे| लोग उनको भी पकड़ लिए| सोखा और उनके लोग लोग बुरी तरह मार खा रहे थे| जो लोग कुछ नहीं कर पाए, उनने कार को ही अपना निशाना बनाया| सोखा और उसके साथी मार से अधमरे हो गए थे| सबसे बुरी दशा कार की थी| अब पुलिस भी आ गयी थी|
                   चुड़ैल सोखा के गिरफ्त में नहीं आई, लेकिन सोखा जी पुलिस की गिरफ्त में आ गए थे| बहू पूरी तरह ठीक हो गयी थी| कुछ समय पहले शांत समंदर की तरह प्रतीत हो रही जनता अचानक तूफ़ान मचा गयी थी|
                   हम लोग फिर वहाँ से चल दिए| शाम हो चुकी थी| बारात आने का समय हो चुका था|
                   और चुड़ैल.............................................

  •       आशीष यादव 

 

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Comment by Rash Bihari Ravi on August 10, 2011 at 1:13pm

bahut sundar kahani ashish bhai  bahut badhia suchna

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