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ग़ज़ल - मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए !

ग़ज़ल -

ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।

गुम गयीं बापू तेरी मूल्यों की सारी टोपियाँ,
और लाठी रह गयी सच को कुचलने के लिए ।

नित गिरावट के बनाए जा रहे हैं कीर्तिमान 
सभ्यता की छातियों पर मूंग दलने के लिए ।

घर बुजुर्गों के बिना कितने वियाबां हो गए ,
अब नसीहत किस से पाएं हम संभलने के लिए ।

रात भर में फ़िक्र को उनकी न जाने क्या हुआ ,
सुब्ह हमसे आ मिले पाला बदलने के लिए ।

मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।

आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।

                                - अभिनव अरुण 
                                  [14052013]

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Comment by Abhinav Arun on May 15, 2013 at 10:21am

आदरणीय केवल जी , श्री सूबे सिंह जी , श्री यतीन्द्र जी श्री राजेश जी श्री विजय जी एवं आदरणीया शालिनी रस्तोगी जी आप सबका आभारी हूँ जो आपने रचना को सराहा और बेहतर लिखने की प्रेरणा दी !!बहुत शुक्रिया आप सबका !!

Comment by Abhinav Arun on May 15, 2013 at 10:19am

आदरणीय श्री वीनस जी को नमन है !! नज़र ए इनायत बनी रहे जनाब !! :-)

Comment by Abhinav Arun on May 15, 2013 at 10:18am

बहुत शुक्रिया आदरणीया शालिनी जी !!

Comment by Abhinav Arun on May 15, 2013 at 10:18am

आदरणीया कल्पना जी अच्छा लगा जो ग़ज़ल आपको भा गयी आभार !!

Comment by Abhinav Arun on May 15, 2013 at 10:17am

आदरणीय श्री संदीप जी बहुत आभार आपका ग़ज़ल पसंद आई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 15, 2013 at 9:34am

वाह वाह सर जी बाकमाल ग़ज़ब की ग़ज़ल हुई है इस शानदार और जानदार ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए 

Comment by कल्पना रामानी on May 15, 2013 at 9:31am

 

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

 

बहुत सुंदर गजल कही है अरुण जी, हार्दिक बधाई... 

Comment by shalini kaushik on May 15, 2013 at 2:04am

बहुत सुन्दर 

Comment by वीनस केसरी on May 15, 2013 at 12:49am

इस तेवर को मेरा सलाम ....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 14, 2013 at 10:56pm

आ0  अभिनव अरुण  जी,  वाह!  बहुत-बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें,   सादर,

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