For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सेवामुक्त सरकार बाबू...!

सरकार बाबू को सेवामुक्त हुए लगभग ६ साल हो गए हैं. उनका लड़का राज भी कंपनी में ही कार्यरत है. इसलिए कंपनी का क्वार्टर छोड़ना नहीं पड़ा. यही क्वार्टर राज के नाम से कर दिया गया. पहले पुत्र और पुत्रवधू साथ ही रहते थे. एक पोता भी हुआ था. उसके 'अन्नप्रासन संस्कार' (मुंह जूठी) में काफी लोग आए थे. अच्छा जश्न हुआ था. मैं भी आमंत्रित था..... बंगाली परिवार मेहमानों की अच्छी आवभगत करते हैं. खिलाते समय बड़े प्यार से खिलाते हैं. सिंह बाबू, दु टा रसोगुल्ला औरो नीन! मिष्टी दोही खान!(दो रसगुल्ला और लीजिये, मिष्टी दही खाइए)... अंत में सूखे मेवे के साथ सौंफ, पान आदि अवश्य देंगे! सिगरेट बीड़ी आदि भी रक्खेंगे ... क्या है कि हर तरह के लोग आते हैं न!
'पोता' बहुत ही प्यारा है! सरकार बाबू उसी को गोद में लिए टहलते रहते हैं. कभी बैठकर उसके साथ खेलते हैं, बोतल से दूध भी पिलाते हैं,चेहरे पर क्रीम या आधुनिक तेल भी लगा देते हैं. पोते के हाथ पैर की भी मालिश कर देते हैं ... हँसते हैं ... कहते हैं बड़ा होकर मेरा पैर दबाएगा न! बच्चा मुस्कुराता है! सरकार बाबु बच्चे की भाषा समझते हैं... अपने आप से कहते हैं ... क्यों नहीं दबाएगा? आशीर्वाद और टाफी भी तो पायेगा!.... ये सब बीते दिनों की बाते हैं! बच्चा जब रोता है, पुत्रवधू(वंदना) से चुप नहीं होता ... वह फिर सरकार बाबू के ही बांहों में आ जायेगा. सरकार बाबु दूध की बोतल से उसे दूध भी पिलायेंगे. बच्चा हंसेगा... दादा की थकान को दूर करेगा! सरकार बाबू की मिसेज भी बच्चे के साथ खेलती है ... किचेन में बहु की मदद भी कर देती है ... वो क्या है कि बहु को स्कूल जाना होता है और समय पर पहुंचना होता है! पहले समय बिताने के लिए स्कूल ज्वाइन की थी. अब जरूरत बन गयी है. आखिर महंगाई के दौर में एक हाथ से कमाने से काम नहीं चलता न! ... बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिला कराना होगा.... फिर और भी तरह तरह के खर्चे.... बाबूजी और माँजी का भी ख्याल रखना पड़ता है .....फिर एक फ्लैट भी तो चाहिए होगा ... कंपनी क्वार्टर में कब तक रहेंगे! सो उन्होंने एक दो बेडरूम का एक फ्लैट बुक करा लिया है ... पोजीसन मिलते ही वे लोग फ्लैट में चले जायेंगे ... माँजी और बाबु जी इसी क्वार्टर में रहेंगे ... उन्हें यही मन लगता है ... क्या है कि काफी दिनों से सरकार बाबू इस क्वार्टर में रहते आए हैं, तो यही क्वार्टर उन्हें अपना घर लगता है. आस पास के लोगों से भी उनके मधुर सम्बन्ध है ! मिलने से पूछेंगे- "केमोन आछेन!".. "भालो तो?" (कैसे हैं? अच्छे है तो?)
सरकार बाबू को पुराने गाने बहुत अच्छे लगते हैं ... के एल सहगल का - "बाबुल मोरा, नैहर छूटोही जाय" और मन्ना डे का - "लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे!" अक्सर गुनगुनाते रहते हैं ... कभी तो हारमोनियम भी बाहर ले आएंगे और हारमोनियम के साथ गायेंगे. मिसेज सरकार को सुनाते हैं और समझाते भी हैं .. इन गानों का गूढ़ अर्थ. मिसेज सरकार हंसती है ... कहती है, शुरू से ही जिंदादिल आदमी हैं ... फिर वो अपने पुराने दिनों में खो जाती है ... कैसे वे दोनों सप्ताहांत में साथ साथ फिल्म देखने जाते थे ... टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ब्लैक में भी टिकट का जुगाड़ कर एक साथ दोनों बैठकर पिक्चर देखते थे. तभी राज का इस दुनिया में आगमन हुआ और वे दोनो दंपत्ति उसी में खो गए! पिक्चर जाना बंद ... छोटे बच्चे को साथ लेकर पिक्चर जाने में परेशानी है, उसे भी पैखाना-पेशाब उसी समय लगेगा, जब कोई बढ़िया सीन चल रहा होता है! सो उन्होंने पिक्चर जाना बंद कर दिया और एक 'ब्लैक एंड वाइट टी वी' ले आये उसमे हर सन्डे को एक फिल्म दिखलाई जाती थी और सप्ताह में दो दिन 'चित्रहार' भी होता था.... धीरे धीरे राज बड़ा हुआ और उनलोगों ने उसका नाम कंपनी के ही स्कूल में लिखवा दिया. अब उसे शुबह शुबह ही तैयार कर स्कूल बस में छोड़ आते थे. बस के ड्राईवर और कंडक्टर सभी बच्चों का ख्याल रखते थे. बच्चे भी उन्हें अंकल कहकर बुलाते थे.
इस तरह राज की पढाई पूरी हुई और कंपनी में ही जॉब में लग गया. फिर वंदना के पिता एक दिन सरकार बाबू के घर आए और राज को अपनी बेटी के लिए मांग लिया .... उस समय ज्यादा कुछ नहीं चाहिए था, तीन कपड़ों और पांच गहनों में बहु और बारातियों का स्वागत ठीक तरह से होना चाहिए! वंदना के पिता ने सरकार बाबु की चाह से कही ज्यादा...बहुत कुछ दिया!
जिन्दगी की गाड़ी लोकल की रफ़्तार से चल रही थी.
अचानक राज ने आकर अपने पिता सरकार बाबु से कहा - पापा, हमलोगों का फ्लैट बनकर तैयार हो गया है ... हमलोग जल्दी ही वहां शिफ्ट हो जायेंगे ... वो क्या है कि बंटी यहाँ आपलोगों के लाड़-प्यार में बिगड़ता जा रहा है. उसे अब कम्पटीसन की तैयारी करनी है, इसलिए उसे अब अकेले ही रहना होगा! .. आपलोग इसी क्वार्टर में रहेंगे .. आपके उपयोग का सामान छोड़ जायेंगे .. आपको यह जगह प्यारा भी लगता है! ... सरकार बाबू ने तो सोचा ही नहीं था ... 'राज' उनका 'जिगर का टुकड़ा'... इस तरह आकर कहेगा! उन्होंने सोचा था ... कहेगा ... पापा, हमलोग अब नए फ्लैट में चलेंगे ... हम दोनों हॉल में पड़े रहते..... बंटी को जी भरकर देखते तो सही ... पर ऐसा नहीं हुआ ... कुछ दिनों तक सरकार बाबु सदमे में रहे, उनका ब्लड प्रेसर भी बढ़ गया... राज और वंदना बीच बीच में आते थे. जरूरत का सामान दे जाते थे. बंटी भी साथ में आकर दादा के पैर छु लेता था और दादा उसे गले से लगा लेते थे.... बंटी अब तो तू बड़ा हो गया है अब टॉफी नहीं रसोगुल्ला खायेगा ... राज की माँ, ले आना तो रसोगुल्ला,... मेरे बंटी के लिए और उसे जी भरकर रसोगुल्ला खिलाते .. बंटी कहता .. बस दादाजी, अब और नहीं वे कहते एक और खा ले मेरी तरफ से ... एक तुम्हारी दादी की तरफ से! ....
'विजय दशमी' को सरकार बाबू के ही घर पर 'विजया मिलन' होता .. सभी नए पुराने लोग आते .. राज के मित्र भी आते! सभी सरकार बाबु के पैर छूते और आशीर्वाद स्वरुप कुछ न कुछ उपहार अवश्य पाते!......
************
अभी कल ही देखा, सरकार बाबू दो छोटे-छोटे बच्चों को पकड़े हुए हैं- उन्हें समझा रहे हैं .. "तुम लोग तो मेरे बंटी के समान है .. तुम लोग बदमाशी करेगा तो हम तुमको डांटेगा.... तुम्हारे पापा को बोल देगा" .. बच्चे कहते - "नहीं दादा जी, हम तो बदमाशी नहीं कर रहे थे". सरकार बाबु कहते - "तो पत्थर कौन चला रहा था ? .... अगर किसी को लग जाता तो? .....मेरा पैर देख रहे हो? .....उन्होंने अपना पैंट थोडा ऊपर किया और रेडीमेड 'प्रेसर बैंडेज' को दिखाया ... इस पैर में मुझे चोट लगी थी.... बंटी के साथ क्रिकेट खेलने में उसने जोर का बाल फेंका था, जो मेरे पैर में लगी थी .. तभी से पैर में दर्द है.... ठंढा में यह और बढ़ जाता है ..... तभी तो मैं धूप में बैठा रहता हूँ" ... बच्चे कहने लगे- "तो डाक्टर को क्यों नहीं दिखाते?" ... "अरे बेटा बहुत दिखलाया डॉ. गोली दे देता है और कहता है- आराम से रहिये!" मैं सरकार बाबू को देखता था - दूध ले जाते वक्त थोड़ा लंगड़ा कर चलते थे ... अगर दूध वाले के आने में विलंब है, तो मैदान का दो चक्कर भी काट लेते थे. संकोच वश मैंने कभी उनके पैर के बारे में नहीं पुछा ... आज जब उनके पास से गुजर रहा था, उन्होंने मुझे पास बुला लिया और अपने जीवन की सारी 'राम कहानी' मुझे सुना दी जो ऊपर वर्णित है!
मैंने पूछ लिया - "आप राज के फ्लैट में जाते हैं कि नहीं" ? ... "कहाँ मैं चढ़ पाऊँगा, पांच तल्ले पर"?... मैंने पुछा - "लिफ्ट तो होगी ही" .. सरकार बाबु दूसरी तरफ देखने लगे ... मैंने पुन: उनसे आग्रह किया .. उनकी आँखों में आंसू छलक आए ..."सिंह बाबू, राज अगर मुझसे यह कहता कि हमलोग सभी फ्लैट में एक साथ रहेंगे .. तो मै अवश्य जाता... पर उसने तो एकांत चाहा था, बंटी के बहाने ... तो मैं क्यों उन्हें डिस्टर्ब करूँ? मेरा तो वही हाल है- जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ! .. आपलोग भले लोग हैं मेरा हालचाल पूछते रहते हैं इसी तरह जिन्दगी कट जायेगी.. सिर्फ एक बात आपसे कहूँगा अगर आपके भी माँ बाप है तो उन्हें बुढ़ापे में अलग मत करियेगा! अपने साथ ही रखियेगा. हमें और क्या चाहिए दो वक्त की रोटी और दो मीठे बोल!"
आज भी सरकार बाबू वैसे ही मस्त हैं और गुनगुनाते हैं "बाबुल मोरा... आ... आ.... नैहर छूटोही जाय!"....

Views: 1185

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on December 11, 2012 at 7:28pm

बहुत सुन्दर कहानी....

सरकार दादा के मुँह से दो रोटी की बात अगर नहीं भी आती, फ़िर भी कहानी अपने प्रवाह से ये विचार पाठक के मन में तैयार करने में सफ़लता प्राप्त करती 

नैहर छुटोही जाये कथा का उच्चतम बिन्दु है......

एक बार फ़िर से बधाई.

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 11, 2012 at 6:12pm

एक सशक्त भाव प्रवाह रचना जिसे पढ़ते चले जाने का मन करता है । बधाई स्वीकारे भाई श्री जवाहिर लाल सिंहजी 

Comment by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 4:57pm

Jabahr ji apki katha ka title he khudgarji  bahut marmik prasang he jo aam  he


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 11, 2012 at 4:12pm

भाई जवाहर लाल जी, आपके विचार और आपकी लेखिनी दोनों यथानुचित सशक्त तो हैं ही, इस कथा के आलोक में कहूँ तो इनमें सामंजस्य भी दिखा है. आपकी कहन शैली प्रवाहमय है और वर्णनप्रिय है.आपकी प्रस्तुत कथा अपना संदेश संप्रेषित करने में सफल है, जवाहर बाबू.

कथा पढ़ता हुआ पाठक अनायास बहता चला जाता है. विशेषकर आखिरी कुछ पंक्तियाँ अत्यंत भावप्रवण बन पड़ी हैं. गुजरते हुए आँखें नम हो जाती हैं.  बधाई स्वीकारें.

Comment by नादिर ख़ान on December 11, 2012 at 3:51pm

बूढ़े दरख्तों की सुध नहीं लेता 

हरेक घर की ये ही कहानी है 

सुंदर मार्मिक रचना अदरणीय जवाहर लाल जी ...

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 11, 2012 at 1:19pm

आज का कडुआ सच. 

बधाई. 

आदरणीय सिंह साहब जी, सादर 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 11, 2012 at 10:20am

जवाहर भाई नमस्कार!,

आज के एकल परिवार और उसमे माँ बाप की स्थिति का चित्रण ॥बहुत खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत किया है। ।क्या बिडम्बना है कुछ बच्छे अपने माँ बाप को छोडकर अकेले रहना पसंद करते है और कुछ माप बाप बच्चों के चाहने पे भी उनके साथ नहीं रहते क्यूंकी उन्हे अपनी दुनिया में मज़ा आता है।

बहुत ही मार्मिक वर्णन आज के बुजुर्गों की दशा पर....

दिल को छोने वाली रचना पर हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service