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"'ध' से धनुष को तोड़ना,मुश्किल था ये काम अहंकार के बिम्ब का ,देख लिया अंजाम...... वाह!…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"मैं जब भी लिखने लगता हूँ, बिटिया दौड़ी आती है। मीठी बातें करके मेरी, कलम चुरा ले जात…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"भीख नहीं तू हक़ दिला, रख माता की आन कर नारी सम्मान पर , माँ को माँ तो मान ..... गम्भी…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"महज नहीं यह जानिए, स्वर व्यंजन की बात हर युग इससे आँकता, मानव की औकात...... बहुत बढ़…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"वाह! बहुत ही खूबसूरत छंद पेश किया है आपने आदरणीय सतविन्द्र जी। हिन्दी छंद पर मन गर्व…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"अद्वितीय! वार्णिकता के बोध से ओत प्रोत है आपकी यह अनुपम दोहा छंद आदरणीय रमेश जी। बधा…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"छंद कभी लिखवाती मुझसे, गीत कभी लिखवाती है..... वाह! वाह! क्या खूब कहा है आपने।वाकई म…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"ज्ञान चीज अनमोल है , बिके न हाट - बजार . मोल ना कोई ले सके , ना ले सके उधार..... बहु…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"तख्ती सलेट खो गई, गया ज्ञान आधार। फैशन के इस दौर में, शिक्षा हुई व्यापार।..... वाह!…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

"दिल जिसका विशाल है उसके, कुटुंब दुनिया सारी है भेद भाव भूलाकर बोलो, हम सब हिन्दुस्ता…"

kanta roy replied Sep 17, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 65

501 Sep 17, 2016
Reply by Dr.Prachi Singh

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"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
18 hours ago

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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
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