For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ajay Agyat
  • Male
  • Faridabad, Haryana
  • India
Share on Facebook MySpace

Ajay Agyat's Friends

  • lal  bihari lal / lal kala munch
  • अरुन 'अनन्त'
  • Er. Ganesh Jee "Bagi"

Ajay Agyat's Groups

 

Welcome, Ajay Agyat!

Profile Information

Gender
Male
City State
faridabad
Native Place
delhi
Profession
engg
About me
poetry my intt

ग़ज़ल

हँसते हँसते आज विदाई देता है 
बूढ़ी माँ को कौन दवाई देता है ...
पागल कर डाला है इस बीमारी ने 
सन्नाटों में शोर सुनाई देता है ..
जब भी तेरी आँखों में आँखें डालूँ 
मुझ को मेरा अक्स दिखाई देता है.. 
तेरी ज़ुल्फों की खुशबू के क्या कहने 
गुलशन का हर फूल दुहाई देता है ....
जलता है शब भर जो दीपक, उस को खुद 
सूरज आ कर ढेर बधाई देता है ....

Ajay Agyat's Photos

  • Add Photos
  • View All

Ajay Agyat's Videos

  • Add Videos
  • View All

Ajay Agyat's Blog

ग़ज़ल

ग़ज़ल के 4 अशआर 

सन्नाटों पर खूब सितम बरपाती है
मेरे भीतर तन्हाई चिल्लाती है
संकल्पों के मन्त्र मैं जब भी जपता हूँ
मंज़िल मेरे और निकट आ जाती है
पूरी क्षमता से जब काम नहीं करता
मेरी किस्मत भी मुझ पर झल्लाती है
हर पल तुझ को याद किया करता हूँ मैं
याद विरह के दंशों को सहलाती है

मौलिक व अप्रकाशित .... 

Posted on November 30, 2014 at 5:23pm — 9 Comments

ग़ज़ल

बचो इस से कि ये आफत बुरी है
नशा कैसा भी हो आदत बुरी है


पतन की ओर गर जाने लगे हो
यकीनन आपकी संगत बुरी है


कि सिगरेट मदिरा गुटका या कि खैनी
किसी भी चीज़ की चाहत बुरी है


हमें मालूम है मरना है इक दिन
मगर इस मौत की दहशत बुरी है


कमाया है जिसे इज्ज़त गँवा कर 
अजय अज्ञात वो दौलत बुरी है

मौलिक व अप्रकाशित 

Posted on October 15, 2014 at 5:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल

अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं

कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं

अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे

हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं 

हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर

सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं



महकती है फिजायें भी चहक़ते हैं परिंदे भी

कि अपने घर में छोटा सा बगीचा हम भी रखते…

Continue

Posted on August 5, 2014 at 7:00am — 11 Comments

ग़ज़ल

मालूम है कि सांप पिटारे में बंद है
फिर भी वॊ डर रहा है क्यूँ कि अक्लमंद है

.

ये रंग रूप, नखरे,अदा तौरे गुफ्तगू
तेरी हरेक बात ही मुझको पसंद है

.

ये दिल भी एक लय में धड़कता है दोस्तो
सांसो का आना जाना भी क्या खूब छंद है

.

सोचा था चंद पल में ही छू लूँगा बाम को
पर हश्र ये है हाथ में टूटी कमंद है

.

दुश्वारियों से जूझते गुजरी है ज़िन्दगी
अज्ञात फिर भी हौसला अपना बुलंद है

.

मौलिक एवं अप्रकाशित.

Posted on August 1, 2014 at 8:30pm — 10 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service