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[१]

प्यार मुहब्बत संग दया समता,करुणाकर ही रखते हैं.

क्रूर कठोर अघोर सभी जन मे, सदबुद्धि वही फलते हैं.

रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,सभी पल मे क्षरते हैं.

धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.

[२]

वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.

काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.

मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला - तट शांत मजा चखता है.

वक्त समग्र विकास करे, पर मानव सत्य नहीं गहता है.

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 23, 2016 at 8:07pm

"आ० कांता राय जी,  सादर प्रणाम!   प्राय: मैंने देखा है कि आप बड़ी लगन के साथ सारी रचनायें पढ़्ती हैं  और उन  पर बिना किसी औपचारिकता के अपनी यथाशक्ति के अनुरूप निर्दोष विचार प्रकट करने से नही चूंकती  हैं.   आपके इस साहित्य प्रेम को शत-शत नमन. इस  सवैया पर आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार. सादर "

Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 11:02am
वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.------ वाह ! बहुत खूबसूरत यह पद्य विन्यास हुआ है आपका आदरणीय केवल प्रसाद जी । आज कुछ सवैया पढने का मन हुआ तो ओबीओ मंच के बीहड़ ,सघन , जरा दूर तक चली गई । देखा कि वहाँ तो यत्र तत्र रत्न सहेजे हुए है । मन मुग्ध हुआ । बधाई स्वीकार करें ।

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