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एक ओर हैं ,

जनरल की बोगीं। 

जिसमें बैठते हैं... 

दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,

कुछ योगी,

और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,

असंख्य रोगी। 

दूसरी ओर हैं ,

उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।

जिनमें बैठते हैं... 

भोगों से घिरे हुए,

भोग भोगते भोगी,,

और ग़रीबी से अछूते,

कई निरोगी।

कितना अनोखा,

यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,

जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,

ये सरकार की रेल है॥ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 15, 2014 at 11:39am

आप सभी के प्रोत्साहन एवं सराहना के लिए ह्रदय से आभार, आ. लड़ीवाला जी, आ. शकूर जी, आ. सोमेश कुमार जी, आ. गीत जी । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2014 at 10:36am

सरकारी रेल में भी वर्ग भेद की श्रेणियों पर अच्छा व्यंग आपकी अभिव्यक्ति से सामने आया है | बहुत खूब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 15, 2014 at 8:29am

आदरणीय संदेश जी आपने बहुत खूबसूरती से अपनी बात प्रस्तुत की है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by somesh kumar on October 14, 2014 at 10:30pm

संदेश जी अगर इसमें स्लीपर का वर्णन भी कर दें तो रेल पूरी हो जाएगी | फिलहाल एक अच्छे प्रतीक को चुन अच्छी रचना प्रस्तुत रने के लिए बधाई |

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 14, 2014 at 12:50pm

विषय-वस्तु पर आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, आ. जीतेन्द्र जी | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 11:21pm

सही विषय पर, एक सुंदर रचना लिखी आपने. बधाई आदरणीय सन्देश जी

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