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गजल अश्‍क

212   212     212    212

गीत उसके लिखे गुनगुनाता रहा
हाल दिल का सभी को बताता रहा

ये उदासी भरी जिन्‍दगी क्‍योंं मिली
सोच कर अश्‍क मैं तो  बहाता रहा

हम को उसके शहर में मिली मौत थी
लाश अपने शहर में जलाता रहा

चाँद में दाग है चाँदनी में नही
बात दिल को यही मैं बताता रहा

प्‍यार से चल सके ना कदम दो कदम
जाम पी पी तुझे तब भुलाता रहा 

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by coontee mukerji on May 15, 2014 at 7:26pm

प्‍यार हमने किया प्‍यार तुमने किया

कोइ हसता रहा कोइ रोता रहा......बहुत खूब. सरल और सुंदर. हार्दिक बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 15, 2014 at 4:27pm

आ० अखंड गहमरी जी 

हम को उसके शहर में मिली मौत थी 
लाश अपने शहर में जलाता रहा...................बहुत सुन्दर 

दूसरे शेर में सिनाद दोष भी है और तकाबुले रदीफ़ भी है...गौर कीजिये 

इस सुन्दर प्रयास पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by शकील समर on May 15, 2014 at 4:02pm

सुंदर गजल के लिए बधाई आदरणीय अखंड गहमरी जी।

जैसा कि आशीष श्रीवास्तव जी ने फरमाया, दूसरे शेर का काफिया दोषपूर्ण है। इसमें सिनाद दोष है। सिनाद दोष यानी हर्फे रवी से पूर्व दीर्घ स्वर का विरोध।

आपने मतला में 'गुनगुनाता' और 'बताता' को वकाफी चुना है। ऐसे में जरूरी है कि अन्य अशआर के काफिए में 'आ' के साथ—साथ 'त' को भी निभाया जाए। लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि 'त' से पहले आने वाला स्वर भी एक ही रहे। मतले के वकाफी में 'त से पहले 'आ' स्वर आया है। लेकिन काफिया 'रोता' में 'त' से पहले 'ओ' स्वर आ रहा है। यानी के हर्फे रवी से पहले दीर्घ स्वर का विरोध हो रहा है। यही सिनाद दोष है।
सादर।

Comment by Shyam Narain Verma on May 15, 2014 at 3:42pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर...............
Comment by Ashish Srivastava on May 15, 2014 at 2:21pm

आदरणीय गजल पर बधाई किन्तु  में शेर में काफिया दुरुस्त नहीं है कृपया उस पर पुनह देखें 

प्‍यार हमने किया प्‍यार तुमने किया

कोइ हसता रहा कोइ रोता रहा

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 15, 2014 at 12:36pm
वाह वाह गहमरी साहेब
सच मे गुनगुनाने मे मज़ा आ गया..बहुत बढ़िया.. ग़ज़ब की रवानी है आपके कलाम में
लिखते रहिए

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