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कुछ कह मुकरियां

१. लगे अंग तो तन महकाए,

जी  भर देखूं  जी में आये,

कभी कभी पर  चुभाये शूल,

का सखी साजन ? ना सखी फूल.

 

 

२. गोदी में सर रख कर सोऊँ,

मीठे मीठे ख्वाब में खोऊँ,

अंक में लूँ, लगाऊं छतिया.

का सखी साजन? ना सखी तकिया .

 

 

३ उससे डर, हर कोई भागे,

बार बार वह लिख कर माँगे.

कहे देकर फिर करो रिलैक्स.

का सखी साजन? ना सखी टैक्स ..

 

४. गाँठ खुले तो इत उत डोले,

जिधर हवा उधर ही हो  होले,

कोई नियत ना कोई ठांव,

का सखी साजन ? ना सखी नाँव.

 

५. गोद बिठा कर जगत  घुमाये ,

तरह तरह के दृश्य दिखाए, 

बिना उर्जा के रहे बेकार,

का सखी साजन ? ना सखी कार.

नीरज कुमार नीर 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on October 10, 2015 at 1:51pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीया कांता राय जी ... इस पुरानी पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया ने रचना से जुड़े रोमांच को पुनर्जीवित कर दिया .... बहुत धन्यवाद आपका ...  

Comment by kanta roy on October 8, 2015 at 8:21am
वाह !!!!! क्या खूबसूरत कह मुकरियाँ हुई है सभी की सभी । और ये वाली तो कमाल की लगी है कि

उससे डर, हर कोई भागे,
बार बार वह लिख कर माँगे.
कहे देकर फिर करो रिलैक्स.
का सखी साजन? ना सखी टैक्स ..हा हा हा हा ..... अति सुंदर ! बधाई आदरणीय नीरज कुमार नीर जी ।
Comment by Meena Pathak on April 9, 2014 at 4:07pm

बहुत सुन्दर ..बधाई आप को

Comment by Neeraj Neer on April 7, 2014 at 8:49am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय कुंती मुख़र्जी जी .. 

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 5:19pm

बहुत सुंदर...रचना .हार्दिक बधाई.

Comment by Neeraj Neer on March 28, 2014 at 8:56am

हार्दिक आभार आदरणीय  Laxman Prasad Ladiwala जी ..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 25, 2014 at 11:58am

पाँचों कह मुकरिया सुन्दर और मन भावन ! हार्दिक बधाई श्री नीराज कुमार जी 

Comment by Neeraj Neer on March 23, 2014 at 8:32am

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 1:58am

वाह !!

इस कोशिश पर मन मुगध है. हार्दिक बधाई, भाईजी.

शुभ-शुभ

Comment by Omprakash Kshatriya on March 11, 2014 at 8:36pm

कह मुकरी -- जितनी अच्छी लगी उतनी उस की प्रतिक्रिया ज्यादा सुखद लगी .

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