उजालों की पनाहों में अंधेरे ढूँढ़ लाया है ।
ये दिल नादाँ बुरे हालात मेरे ढूँढ़ लाया है ।
के बीती रात जो यादें भुलाकर सो गया था मै ,
उन्हें जाने कहाँ से फिर सवेरे ढूँढ़ लाया है ।
ये अरमाँ ये तमन्नायें ये ख्वाहिश और ये सपने ,
मेरे चैनों सुकूनों के लुटेरे ढूँढ़ लाया है ।
ख़यालों कल्पनाओं की अज़ब दुनिया में खोया है ,
हकीकत से परे पहलू घनेरे ढूँढ़ लाया है ।
कभी सीखा न था हमने ग़ज़ल गीतों का ये दमखम ,
मेरी जानिब में ग़ालिब के बसेरे ढूढ़ लाया है ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज ' प्रेम'
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बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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