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राजकुमार तोते को दबोच लाया और सबके सामने उसकी गर्दन मरोड़ दी... “तोते के साथ राक्षस भी मर गया” इस विश्वास के साथ प्रजा जय जयकार करती हुई सहर्ष अपने अपने कामों में लग गई।
 
उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था... हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूंजी... “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकाल कर अन्यत्र छुपा दी है...  प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई... राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच प्रजा अब स्वयं अपने हाथों से ‘सत्तारानी’ के कक्ष कि चाबी आपको सौंप कर जाएगी...”

राजकुमार के होंठों के साथ ही पूरे दरबार में एक आशावादी मुस्कुराहट नृत्य करने लगी।

____________मौलिक/अप्रकाशित____________

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 14, 2013 at 11:12am

सादर आभार आदरणीय गणेश भाई...

Comment by Shubhranshu Pandey on October 6, 2013 at 5:57pm

आदरणीय संजय जी, आज कल केवल मारने और फ़ाड़ने के काम हो रहे हैं. इस चाभी लेने देने के चक्कर में तोते की जान गयी.

सुन्दर कथा. बधाई.

सादर.

 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 3:55pm

     आदरणीय संजय मिश्राजी , इशारों इशारों में आपने बहुत ही गहरी बात कह दी है । राजनेताओं के सड्यंत्र  के बीच  प्रजा की असहाय स्थिति का सुन्दर वर्णन किया है आपने । बहुत-बहुत  बधाई । 
    

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 3:20pm

स्थापित बिम्बों का राजनैतिक परिपेक्ष्य में सुन्दर प्रयोग

सत्ता हासिल करने के लिए प्रजा को भ्रमित करने की कूटनीति को प्रस्तुत करती सुन्दर लघुकथा 

हार्दिक बधाई आ० संजय मिश्रा जी 

Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 12:54am

इस  कुटनीति का कोई जवाब नहीं इसके बिना तो राजपाट चलता नहीं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2013 at 11:36pm

इंगितों का सुन्दर और प्रभावी प्रयोग हुआ है, भाई संजय हबीबजी.  लेकिन, यह कथा अंत में बहुत बोलती हुई लगी जिसकी आवश्यकता लग नहीं रही थी. ऐसा मुझे लगा है.

इस सुन्दर प्रयास पर हार्दिक बधाइयाँ.

शुभेच्छाएँ

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 11:31pm

बहुत बढ़िया , गूढ अर्थ को अपने मे समेटे हुये इस सुंदर लघु कथा हेतु बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on October 4, 2013 at 11:31pm

प्रजा इसी तरह तो हर बार ठगी जाती है! बहुत सुन्दर कथा! आपको हार्दिक बधाई !

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:33pm

सुंदर एवं सच्चाई को प्रदर्शित करती इस लघु कथा के लिए बधाई हो आपको आदरणीय संजय जी...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 6:48pm

आदरणीय संजय भाई , बहुत सुन्दर लघु कथा !! यही हो रहा है आज कल , असल रावण कभी मारा ही नही जाता और जनता भ्रम मे जीती रहती है ! ! बहुत बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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