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मुक्तिपथ........................डॉ० प्राची

हे देवपुरुष !

हे ब्रह्मस्वरूप !

कहती हूँ तुम्हें - श्रीकृष्ण !

 

पर

माधवमैं -  

वंशी धुन सम्मोहित

प्रेम साख्य अठखेलियों की

परिकल्पना में रास स्वप्न संजोती  

तुम्हारी चिर सखि शक्ति राधिका नहीं !

 

और माधवमैं -

आत्मिक आलौकिक

प्रेमाधीनसुधि हारी

कर्म बन्ध विरक्ताजग त्यक्ता,

तुममें लीन तुम्हारी भाव-परिणिता मीरां भी नहीं !

 

हे माधव ! मैं -

नतमस्तककरबद्ध,

चरण-वंदिताश्रद्धार्पिता

ज्ञान पिपासुतिह मैत्रेयारूढ़,

जीवन समर में अकिंचन किंकर्तव्यविमूढ़...

लिए मन-वचन-कर्म अनुप्राणित समर्पण, पार्थ सम हूँ शरण !

 

हे कृष्ण !

बन्धमुक्त-आबद्ध समन्वय के सारे

सुलझाओ संशय...

गुरु सम सदिश् करो जीवन-रथ

छटे धुँधलका, ज्ञानालोकित हो जीवन, पाए मुक्तिपथ !

 

 

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by रविकर on September 3, 2013 at 7:15pm

गजब प्रस्तुति-
आभार आदरेया-

राधा मीरां सी नहीं, मैं सीधी सी पार्थ |
मिले ज्ञान से मुक्ति-पथ, कविता का भावार्थ-


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 3, 2013 at 6:35pm

आदरणेया डा. प्राची जी , पढ के ऐसा लगा जैसे भावों को शब्द रूपी मनपसन्द पहरावा मिल गया हो और स्वयम भाव व्यक्त होने के लिये लालायित हों , और स्वतः व्यक्त हो रहे हों खुशी खुशी !! बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 4:54pm

आ० प्राची जी सुंदर भावों की संकल्पना को शब्दों का मूर्त रूप दिया है बहुत सन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

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