For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साहित्य धर्मिता

साहित्य अपने आप मे एक बहुत बड़ा विषय है इस पर जितनी भी चर्चा की जाए कम ही होगी । साहित्य का शाब्दिक अर्थ स+ हित अर्थात हित के साथ या लोक हित मे जो भी लिखा जाय या रचा जाए वह साहित्य होता है। और धर्मिता का शाब्दिक अर्थ है ध + रम यहाँ ध अक्षर संस्कृत के धृ धातु का विक्षिन्न रूप है जिसका अर्थ है धारण करना और रम भी संस्कृत के रम् धातु  से उद्भासित है जिसका अर्थ है रम जाना या तल्लीन हो जाना । इसी को धर्मिता कहते हैं । लोक हित को धारण कर उसी मे रम जाना ये हुई साहित्य धर्मिता। अब प्रश्न यहाँ यह उठता है कि सहित शब्द तो अपने आप मे पूर्ण नहीं हुआ । यहाँ किसके सहित लगाने पर जो उत्तर हमे मिलेगा वह अपने आप मे पूर्ण हो जाएगा । जैसे - हिन्दी साहित्य , धार्मिक साहित्य , संगीत साहित्य , आयुर्वेद साहित्य,  अँग्रेजी साहित्य , पंजाबी साहित्य , नेपाली साहित्य, मैथिली साहित्य इत्यादि जितने अंचल उतने साहित्य । इस प्रकार हम देखते है कि साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक है ।

 देखा जाए तो साहित्य की उत्पत्ति हमारे भारत मे ही हुई । इस विषय पर गहन चिंतन व मनन करने वाले प्रबुद्ध जनों के द्वारा बहुत कुछ लिखा गया है जिसको समझने के लिए थोड़ा आगे चलना होगा । हमारे भारत मे साहित्य का भंडार भरा था । जिसको समय दर समय विभिन्न आक्रमण करियों ने लूटा छीना और आज स्वयम वे खुद को बहुत बड़े साहित्यकार बताते हुये हमारी ही साहित्यिक धरोहर का पूरा लाभ उठाते हुये दुनिया मे राज कर रहे हैं । तक्षशिला , नालन्दा इस बात का जीता जागता उदाहरण है । यहाँ पर हमारे विभिन्न साहित्यों का सृजन किया गया था । बड़े बड़े मनीषियों ने बड़े जतन से इन साहित्यों की रचना की थी । और उनके लिखे गए साहित्य को सहेजने का कम इन विश्वविद्यालयों मे किया जा रहा था । अंग्रेजों द्वारा इन साहियों को चुराया गया जब नहीं चुरा पाये तो आग लगा दी, कई महीनों तक लगातार जलती रही अग्नि मे जाने कितना साहित्य स्वाहा हो गया । जिसके अवशेष अब हमे उनकी क्रूर मानसिकता का दर्शन कराते है । आज हमारे पास न तो वे मनीषी गण है और न उनका साहित्य ।

परंतु आज भी हमारी धरा ऐसे सुपत्रों से सिक्त है यहाँ आज भी साहित्यों का सृजन होता ही रहता है । कई ऐसे माँ भारती के सपूत एवं नारियां हुई हैं जिन्होने युगों की रचना की है। उनका मुख्य उद्देश्य होता था कि जो कुछ भी वे लिखे वो सत्य के सहित हो और जन मानस को जागरूक करने वाला हो । वे जो भी रचना करते थे वो एक युग के रूप मे जाना गया जैसे भारतेन्दु युग , द्विवेदी युग इसी क्रम मे  तुलसीदास जी एव सूरदास जी , मीरा जी , इन सभी का साकार ब्रम्ह का दर्शन कराते हुये आशावादी युग की रचना की । आधुनिक युग की मीरा – महादेवी वर्मा जी , निराला जी , पंत जी , दिनकर जी, जयशंकर प्रसाद जी का साहित्य मे अविस्मरणीय योगदान है जिसमे प्रसाद युग जयशंकर जी नाम से चला । ऐसे कई साहित्य कार हैं जिनके योगदान से वसुंधरा सिंचित है । ये तो हिन्दी साहित्य जगत के चंद नाम है । ऐसे ही नामों से भरा पड़ा है हमारा साहित्य का संसार । नए साहित्यों की रचना के साथ साथ आज अवश्यकता इस बात की भी है उन पौराणिक साहित्य का भी सृजन किया जाय । जिसके लिए अथक प्रयासों की अन्नत आवश्यकता है ।

 

 

पूर्णतया अप्रकाशित एवं मौलिक

  

Views: 1018

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on August 6, 2013 at 10:59pm

आ० केवल भाई जी आपका कथन सही है । मेरा प्रयास भी यही बताने का है । सादर ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 6, 2013 at 8:11pm

                आ0 अन्नपूर्णा जी, साहित्य धर्मिता वास्तव में एक श्रमसाध्य एवं जीवटता का कार्य है।  आपने जो भी इतिहास, गौरव और प्रभावों का उल्लेख किया वह सर्वथा उचित एवं सत्य ही है।  विस्तृत और संकीर्णता से परे इसका एक पहलू और भी है-  जब जब समाज हित में मनीषियों ने देखा, सुना और अनुभूति करके उसे मानक मानदण्डो अर्थात व्याकरण, रस, छन्द, अलंकार आदि के अनुरूप भाषा को सुसंगठित करके प्रस्तुत किया है, तब तब एक नये युग का जन्म हुआ है।  इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज हम क्या लिख रहे हैं? क्यों लिख रहे हैं, और किसके लिए लिख रहे हैं, तो हमें अपने साहित्य धर्मिता की विषय वस्तु सहजता से स्पष्ट हो सकेगी।    

                      हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 6, 2013 at 7:36pm

apka hardik abhar  adarniy Aditya ji .

Comment by Aditya Kumar on August 6, 2013 at 2:08pm

साहित्य से आपने एक नया परिचय करवाया है ! सुन्दर अवम मार्गदर्शक ! हार्दिक बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service