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देश में फल-फूल रहा, सट्टे का बाजार,

कुछ लोगो के बिक रहे,देखो सब घर बार |

 

सट्टा गर सरकार का, नियमो में वह वैध

जनता गर सट्टा करे, उसको कहे अवैध |

 

राजनीति व्यवसाय है,दीमक जैसी चाट

घोटाले करते रहे,  कुर्सी के है  ठाट |

 

राजनीति में जो सफल,घोटालो में लिप्त, 

इस धंधे में देख लो,नेता सब संलिप्त |

 

बहुत संपदा पास में, कल तक तो थे रिक्त  

नित्य संपदा बढ रही, सुविधाएँ अतिरिक्त |

 

सुविधाए सब ले रहे, संसद करते ठप्प,

जिस दिन संसद चल पड़े,खूब लड़ाते गप्प | 

.

(मौलिक व् अप्रकाशित)

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2013 at 8:14pm

आ0 लड़ीवाला सर जी,   अतिसुन्दर समसामयिक दोहे। सर जी, भाई राम शिरोमणि जी के संकेत को अवश्य गौर करें।  इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by ram shiromani pathak on July 11, 2013 at 7:51pm

आदरणीय लक्ष्मन सर सुन्दर दोहे हुए है //हार्दिक बधाई आपको

अथाह धन अब पास में, कल तक था संक्षिप्त,
नित्य संपदा बढ रही, सुविधाएँ अतिरिक्त |////////////इसे पुनः देख लें //सादर

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