For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं    उन्मादी   मूढ़वत,   रहा  ढूँढता  संग

सहज हुआ अद्वैत पल,  लहर  पाट  आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध

होंठ पुलक जब छू रहे,   रतनारे   दृग-कोर
उसको उससे ले गयी,  हाथ पकड़ कर भोर

अंग-अंग  मोती  सजल,  मेरे तन पुखराज
आभूषण बन  छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज

संयम त्यागा स्वार्थवश,  अब  दीखे  लाचार
उग्र  हुई  चेतावनी,  बूझ  नियति  व्यवहार

*******************************

--सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 2:42pm

आदरणीय इनमे से चार दोहे तो शब्दशः, भाव की गहनता तक समझ आ गए पर एक दोहा अभी भी पहेली बना हुआ है...

अंग-अंग  मोती  सजल,  मेरे तन पुखराज 
आभूषण बन  छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2013 at 10:44pm

मेरे इस प्रयास को अनुमोदन हेतु सादर धन्यवाद, आदरणीया कल्पना जी.

Comment by कल्पना रामानी on July 22, 2013 at 10:37pm

अत्यंत गूढ चिंतन के क्षणों की भाव प्रणव अभियक्ति---

आदरणीय आपकी लेखनी को नमन...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2013 at 10:27pm

आदरणीया प्राचीजी,  इनके अर्थ यहाँ प्रस्तुत करना संभव तो है, किन्तु उचित नहीं.  कारण कि, ये दोहे विशेष मनस-दशा की उत्पत्ति हैं.  हाँ, क्षीण सा इंगित अवश्य कर सकता हूँ.  कि, इनमें वैदान्तिक तथ्यात्मकता, आनन्द की अति उच्च भाव-दशा, संयोग की अन्यतम उपलब्धि समाधि,  जीवन-सार तथा प्रकृति के रहस्य तथा सामंजस्य को निरुपित करने का प्रयास हुआ है. 

एक पाठक के तौर पर आप स्वयं ही इनसे धीरे-धीरे समरस होती जायेंगीं. आपने भावार्थ समझने के क्रम में जो अनुमान साझा किया है वे सही दिशा की इंगित करते प्रतीत हो रहे हैं.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2013 at 7:51pm

आदरणीय सौरभ जी,

यह दोहे निश्चय ही आपकी अनुपम कृति ही होंगे, और बहुत गूढ़ अर्थ समेटे हैं.. कभी इनमें प्रिय प्रीत दिखती है, तो कभी प्रकृति व्यवहार, तो कभी अद्वैत के द्वार की ओर ले जाता रहस्य...

यकीन मानिए इस दोहावली को आज तक कम से कम १५ बार तो पड़ा मैंने और समझने की गंभीर चेष्टा भी की, पर आज भी हर दोहे का निहित भावार्थ स्पष्टतः नहीं समझ पाई....:(((

तभी तो इस रहस्मयी दोहावली पर आज तक टिप्पणी नहीं कर सकी. 

सादर अनुरोध है .यदि आप इनके अर्थ और चिंतन पर प्रकाश डालें तो मैं भी इस रहस्य गंगा के भावों में कुछ पल ठहर आनंदित हो सकूँ.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2013 at 12:23am

सराहना के लिए, हार्दिक धन्यवाद, अजय भाईजी

Comment by ajay yadav on July 21, 2013 at 12:20pm

आदरणीय श्रीमान  जी,

सादर प्रणाम

बहुत ही सुंदर दोहे |

मन पुलकित हो गया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 7:24pm

भाई वसंत जी, आपका इन छंदों पर आन इनकी सार्थकता है.

सहयोग बना रहे.. . हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 7:22pm

आदरणीया शशिजी, प्रयास सार्थक लगे यही आवश्यक है. सहयोग के लिए सादर धन्यवाद

Comment by बसंत नेमा on July 3, 2013 at 10:27am

संयम त्यागा स्वार्थवश,  अब  दीखे  लाचार
उग्र  हुई  चेतावनी,  बूझ  नियति  व्यवहार

अति सुन्दर दोहे ..... बधाई आप को सौरभ जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service