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हवा की कोई आवाज नहीं होती।

हवा की कोई आवाज नहीं होती,

आवाज तो पेड-पौधों के पत्तों की होती है।

हवा तो चलती है

सब से मिलती है

सबसे बात भी करती है

फिर भी बोलती नहीं

सबको गुदगुदाती है,

हंसाती है,

और थपथपा कर दौड जाती है।

अकेली हो कर भी सबकी हो जाती है।

अगर तुम नाराज़ भी हो जाओ

तुम्हें झट से मना लेती है

और तुम तपाक से मान जाते हो।

लेकिन फिर भी हवा की कोई आवाज नहीं होती

आवाज आपकी होती है।

नाम आपका होता है।

काम हवा का होता है।

सरसराहट..........सरसरसरसरसरसरसर.............

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Comment by सूबे सिंह सुजान on August 18, 2012 at 3:38pm

जी..AVINASH S BAGDE....आपके विचारों का , आपकी प्रतिक्रिया का चल कर आना........मेरे लिये एक सुखद पल है।

मैने हवा को एक दिन अनुभव किया। धान की फ़सल से गुजरते हुये वह जा रही थी। आर धान के पौधे गुंजायमान हो रहे थे । तभी कविता का जन्म हुआ।

Comment by AVINASH S BAGDE on August 18, 2012 at 10:28am

अकेली हो कर भी सबकी हो जाती है।

हवा की कोई आवाज नहीं होती

आवाज आपकी होती है।

नाम आपका होता है।

काम हवा का होता है।...kya khoob ....bhai सूबे सिंह सुजान ji.....

 

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