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दोहा मुक्तिका यादों की खिड़की खुली... संजीव 'सलिल'


दोहा मुक्तिका
यादों की खिड़की खुली...
संजीव 'सलिल'
*
यादों की खिड़की खुली, पा पाँखुरी-गुलाब.
हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब..

गिनती की सांसें मिलीं, रखी तनिक हिसाब.
किसे पाता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब..

हम दकियानूसी हुए, पिया नारियल-डाब.
प्रगतिशील पी कोल्डड्रिंक, करते गला ख़राब..

किसने लब से छू दिया पानी हुआ शराब.
मैंने थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब..

सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख नकाब.
उम्र न छिपती बालभर,  मलकर 'सलिल' खिजाब..

नेह निनादित नर्मदा, नित हुलसित पंजाब.
'सलिल'-प्रीत गोदावरी, साबरमती चनाब..

पैर जमीं पर जमकर, देख गगन की आब.
रहें निगाहें लक्ष्य पर, बन जा 'सलिल' उकाब..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

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