For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 36

कल से आगे ..................

रावण की दुनियाँ जैसे वेदवती के ही चारों ओर केन्द्रित होकर रह गयी थी। अपनी सारी संकल्पशक्ति समेट कर वह अपने चिंतन को दूसरी ओर मोड़ने का प्रयास करता पर चिंतन था कि घूम-फिर कर वहीं आकर अटक जाता। वेदवती की छवि उसकी आँखों में रह-रह कर कौंध जाती थी। मन छटपटाने लगता था। बड़े प्रयास से वह कई दिन तक अपने को रोके रहा पर फिर एक दिन वह दिमाग को भटकाने की नीयत से जंगल में निकल गया। पता नहीं कब तक घूमता रहा।


‘‘अरे वैश्रवण ! इतने दिन तक दर्शन ही नहीं दिये !’’ वेदवती के उलाहने भरे स्वर से उसकी तंद्रा भंग हुई। उसे लगा सपना देख रहा है। उसने सर झटका। वह तो वेदवती से अपने मन को दूर ले जाने के प्रयास में निकला था।
‘‘क्या बात है ? कुछ अनमने से लग रहे हो ?’’ पुनः वेदवती के स्वर ने उसे पूरी तरह चैतन्य किया। नहीं यह सपना नहीं था। कोई अदृश्य शक्ति जैसे अनजाने ही उसे वेदवती के आश्रम तक खींच लाई थी।
आज उसने सफेद धोती लपेट रखी थी। हाँ लपेट ही रखी थी। कायदे से पहनना सिखाने वाला शायद कोई मिला ही नहीं था। इस अनगढ़ ढंग से पहनी हुई धोती ने उसके यौवन को और भी घातक बना दिया था। रावण सुध-बुध भूल कर उसे एकटक निहारता रह गया।
‘‘क्या देख रहे हैं ? मुझे कुछ भिन्न सी प्रतीति हो रही है।
‘‘अ.... अ... आपकी धोती ... असुविधाजनक है कुछ ?’’ आज जीवन में पहली बार रावण हकलाया था।
‘‘नहीं ! ऐसा भी नहीं है, किंतु ऐसा भाव मैंने पूर्व में कभी अनुभव नहीं किया।’’ वेदवती के कपोल आरक्त हो गये थे, फिर भी उसने कह दिया।
‘‘ओह ! मैं तो आशंकित हो गया था कि आपको असुविधा हुई। क्या करूँ इस परिधान में आप इतनी सुन्दर लग रही हैं कि नेत्र बेकाबू हो गये थे।’’
‘‘अरे यह ! कभी-कभी पास की किसी बस्ती से कभी-कभी कुछ कृपालु स्त्रियाँ आ जाती हैं। उन्हें लगता है कि मैं उन्हें आशीर्वाद दे दूँगी तो उनके कष्ट दूर हो जायेंगे। बेचारी भोली स्त्रियाँ। वे ही आश्रम की कुछ व्यवस्थायें भी कर जाती हैं। अभी परसों भी दो महिलायें आ गयी थीं। मुझे तो ध्यान नहीं वे ही बता रही थीं कि पिछली बार जब वे आई थीं तो मृझे मृगछाला लपेटे देख गयी थीं, वही ये दे गयी हैं। वे लोग बड़े सुरुचिपूर्ण विधि से ऐसी ही धोती पहने थीं, बड़ी सुंदर लग रही थीं। मुझे तो बाँधनी ही नहीं आती। उन्हीं की छवि याद करके पहनने का प्रयास किया है। बुरी लग रही है न ?’’
‘‘नहीं बहुत सुन्दर लग रही है।’’ रावण बुरी कैसे कह देता इस धोती ने तो उसकी देहयष्टि की मादकता को अनजाने ही और उभार दिया था। वह झीनी सी धोती वेदवती के उभारों छुपाने से अधिक उभार रही थी।
‘‘उस दिन के बाद से आप कहाँ विलुप्त हो गये थे ? मैं तो नित्य आपकी प्रतीक्षा करती थी।’’
‘‘विलुप्त कहाँ हो जाऊँगा, आश्रम पर ही था।’’
‘‘फिर आये क्यों नहीं इधर ?’’
‘‘आपने ही तो वर्जित कर दिया था।’’
‘‘मैंने ?’’ वेदवती के स्वर में अपार आश्चर्य था ‘‘मैंने कब वर्जित किया आपको ? क्यों झूठा लांछन लगा रहे हैं।’’
‘‘आप ही ने तो कहा था कि आप विष्णु की वाग्दत्ता हैं।’’
‘‘तो ? ... इसमें वर्जना कहाँ है ?’’
‘‘छोड़िये इसे। बताइये आपकी साधना कैसी चल रही है ?’’
‘‘नहीं चल पा रही !’’ वेदवती ने कुछ अनमने से स्वर से कहा।
‘‘नहीं चल पा रही, तात्पर्य ?’’
‘‘ध्यान लगाने का प्रयास करती हूँ तो ध्यान में आप आ जाते हैं। एक बात बताऊँ ? मुझे अब आपके विषय में सब कुछ ज्ञात है। ब्रह्मा जी का वरदान, फिर आपका मंदोदरी से विवाह। फिर कुबेर पर विजय। फिर शिव से भेंट .... सब कुछ।’’ वेदवती ने किसी बच्ची की सी सरलता से अपनी उपलब्धि गिनाई।
‘‘क् ... क् ... कैसे ? किसने बताया आपको ???’’ रावण के स्वर में असीम आश्चर्य था।
‘‘और कौन बतायेगा। कहा तो मैंने ध्यान में आप आ जाते थे। और कौन रखा है यहाँ बताने को ?’’
‘‘आप ध्यान में इतनी पारंगत हैं ? लगता तो नहीं ?’’ रावण को अभी भी आश्चर्य था।
‘‘लो ! पैदा हुई तब से और कर ही क्या रही हूँ। पर पता नहीं क्यों जैसे ध्यान में मैंने आपको घेर लिया वैसे विष्णु को नहीं घेर पाती। पहले तो झलक मिलती भी थी, उस दिन के बाद से तो वह भी नहीं मिलती।’’ वेदवती के स्वर में फिर उदासी सी आ गयी थी।
‘‘ऐसा क्यों ???’’
‘‘नहीं पता !’’
‘‘तो अब क्या करेंगी ?’’
‘‘प्रयास करती रहूँगी और क्या कर सकती हूँ।’’
‘‘अच्छा एक बात बताइये, अगर विष्णु नहीं आते तो आप क्या करेंगी ?’’
‘‘आयेंगे कैसे नहीं ? उन्हें आना पड़ेगा।’’
‘‘मान लीजिये नहीं आते !!’’
‘‘कहा न मुझे नहीं पता। कोई और बात नहीं है आपके पास। आपके आने से कितनी प्रसन्नता हुई थी मुझे और आप वही दुखती रग छेड़ने लगे।’’
‘‘अच्छा चलिये नहीं करता। तो क्या बात करूँ ?’’
‘‘कुछ भी। आपसे वार्ता करना मुझे अच्छा लगता है।’’
‘‘सच !’’ रावण को जैसे मुँहमांगी मुराद मिल गई हो। जैसे अन्धे को आँखें मिल गई हों, उसका चेहरा खिल उठा वह आगे बोला - ‘‘मुझे तो लगा था कि मेरे आने से आपका ध्यान भंग होगा, इसीलिये बचता था। मैं नित्य आऊँगा अब।’’
‘‘यह हुई ना मित्रों वाली बात। आप बहुत अच्छे हैं।’’
‘‘आप भी बहुत अच्छी हैं। बहुत सुन्दर। सच में मैंने ऐसा सौन्दर्य पहले नहीं देखा।’’
‘‘अब लगे चापलूसी करने।’’
‘‘मैं चापलूसी नहीं कर रहा। रावण इंद्र के समान लम्पट नहीं हैं किंतु आपसे मिलने के बाद से मेरा मन अपने वश में नहीं है। बहुत चाहता हूँ ध्यान को दूसरी ओर लगाऊँ पर नहीं लगता। प्रति क्षण आपकी छवि मेरी आँखों में नृत्य करती रहती है।’’
‘‘सत्य ?’’ वेदवती ने उत्साह से कहा।
रावण को भय था कि इस बात का वेदवती बुरा न मान जाये पर वह तो चहक उठी थी, खिल उठी थी। रावण उसके चरित्र का विश्लेषण करने का प्रयास कर रहा था पर उलझ कर रह जाता था। उसने उत्तर दिया -
‘‘उतना ही सत्य जितना सूर्य और चन्द्र सच हैं।’’
‘‘तब तो हम दोनों एक ही पथ के पथिक हैं। मुझे ध्यान में आप दिखाई देते हैं और आपको मैं। कहते हुये वेदवती हँस पड़ी। उन्मुक्त हँसी। जैसे रावण की समस्त चेतना को रिमझिम ने सराबोर कर दिया हो। वह भी हँस पड़ा।

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित

-सुलभ अग्निहोत्री

Views: 389

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service