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Dilbag virk's Blog (12)

वो सिर्फ बदनाम है

बेवफाई तेरी का ये अंजाम है
गूंजता महफ़िलों में मेरा नाम है |


क्या मिला पूछते हो, सुनो तुम जरा
इश्क का अश्क औ' दर्द इनाम है…
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Added by dilbag virk on May 24, 2012 at 7:42pm — 10 Comments

गजल

कुछ नया इसमें नहीं , दास्तां पुरानी दे गया 

यार मेरा आँख को नमकीन पानी दे गया |


मैं इसे सबको सुनाऊं , लोग सुनते झूम के …
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Added by dilbag virk on May 5, 2012 at 8:18pm — 6 Comments

विवशता ( कविता )

मजदूर दिवस को समर्पित…



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Added by dilbag virk on May 1, 2012 at 11:30am — 7 Comments

मेरा देश ( चोका )

देश मेरे में

अजूबे ही अजूबे

करें नमन

लोग पैर छूकर ।

           …

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Added by dilbag virk on April 2, 2012 at 9:00pm — 5 Comments

गजल

वो खुद में इतना सिमटे-सिमटे थे
जैसे वो दिल को पकड़े-पकड़े थे |


उनको देख हुए थे बेसुध हम तो
क्या बात करें अब मुखड़े, मुखड़े थे |…
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Added by dilbag virk on March 17, 2012 at 7:28pm — 12 Comments

प्यार ( कविता )

तुझे पा लूं
बाहों में भरकर चूम लूं
है यह तो वासना |


प्यार कब…
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Added by dilbag virk on March 8, 2012 at 8:00pm — 4 Comments

हाइकु गीत



 खुद बेवफा

 दूसरों से चाहते

 करें वो वफा |…

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Added by dilbag virk on March 2, 2012 at 8:42pm — 6 Comments

सरकारी नौकरी ( लघुकथा )

'' घर नहीं चलना , टाइम हो चुका है .'' - मेरे साथी ने मुझसे कहा . मैंने इस कार्यालय में आज ही ज्वाइन किया था .शायद इसीलिए उसने मुझे याद दिलाना चाहा था .
'' मेरी घड़ी पर तो अभी दस मिनट बाकी हैं .'' - मैंने घड़ी दिखाते हुए कहा .
'' वो तो मेरी घड़ी पर भी हैं…
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Added by dilbag virk on February 16, 2012 at 8:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल

गरीबी के अब तो जमाने हुए |

मुहब्बत से खाली खजाने हुए |


नहीं मिटता…
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Added by dilbag virk on February 3, 2012 at 5:30pm — 8 Comments

घनाक्षरी



हुए थे सूरमा कई, जो खेले थे जान पर ,

उनके ही प्रताप से , ये देश स्वतंत्र है |
न हो तानाशाह कोई, जनता का राज हो ,
दे संविधान बनाया , इसे गणतन्त्र है |…
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Added by dilbag virk on January 16, 2012 at 10:17pm — 3 Comments

कुंडलिया

नारा अन्ना टीम का , हो सख्त लोकपाल ।

ले आई कमजोर बिल , सरकार चले चाल ।।

सरकार चले चाल , करे है लीपा पोती ।
चलती थी ये चाल , जिन दिनों जनता सोती ।।
जाग उठा है देश , नहीं …
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Added by dilbag virk on January 2, 2012 at 9:59pm — 1 Comment

इस दिल ने नादानी में............

इस दिल ने नादानी में

आग लगा दी पानी में ।

 

वा'दे सारे खाक हुए

आया मोड़ कहानी में ।

 

तेरी याद चली आए

है ये दोष निशानी में…

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Added by dilbag virk on December 1, 2011 at 4:30pm — 9 Comments

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आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
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"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
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